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प्राकृत भाषा एवं साहित्य
सत सत्ताई कइवच्छलेण कोडीअ ममआरम्मि । हालेण विरइआणि सालंकाराण गाहाणं ॥
-गाथा-१/३ गाथासप्तशती की गाथाओं की प्रशंसा अनेक प्राचीन कवियों ने की है। बाणभट्ट ने इस ग्रन्थ को गाथाकोश कहा है । इस ग्रन्थ का स्वरूप मुक्तक काव्य ग्रन्थों को परम्परा में अपना विशेष स्थान रखता है। इसमें गाथाओं का चयन करके उन्हें सौ-सौ के समूह में गुंफित किया गया है । सात सौ की संख्या के आधार पर इसका नाम गाथासप्तशती रखा गया है । इस ग्रन्थ में किसी एक ही विषय की उक्तियाँ नहीं हैं । अपितु शृंगार, नीति, प्रकृतिचित्रण, सज्जन-दुर्जन के स्वभाव, सुभाषित आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित गाथाएँ हैं। अधिकतर लोक-जीवन के विविध चित्रों की अभिव्यक्तियाँ इन गाथाओं के द्वारा होती हैं। नायक-नायिकाओं की विशेष भावनाओं और चेष्टाओं का चित्रण भी इस ग्रन्थ की गाथाएँ करती हैं।
वज्जालग्गं-प्राकृत का दूसरा मुक्तक-काव्य वज्जालग्गं है। कवि जयवल्लभ ने इस ग्रन्थ का संकलन किया है। इसमें अनेक प्राकृत कवियों की सुभाषित गाथाएँ संकलित हैं। कुल गाथाएँ ७९५ हैं, जो ९६ वज्जाओं में विषय की दृष्टि से विभक्त हैं। यहाँ "वज्जा" शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वज्जा देशी शब्द है, जिसका अर्थ है-अधिकार या प्रस्ताव । एक विषय से सम्बन्धित गाथाएँ एक वज्जा के अन्तर्गत संकलित की गई हैं। जैसे वज्जा नं. ४ का नाम है-"सज्जणवज्जा"। इसमें कुल १७ गाथाएँ एक साथ हैं, जिनमें सज्जन व्यक्ति के सम्बन्ध में ही कुछ कहा गया है। __ वज्जालग्गं गाथासप्तशती से कई अर्थों में विशिष्ट है। इसमें विषय की विविधता है। शृंगार एवं सौन्दर्य का चित्रण ही जीवन में सब कुछ नहीं है। व्यक्ति की अपेक्षा समाज के हित का चिन्तन उदारता का द्योतक है। इस मुक्तक-काव्य में साहस, उत्साह नीति, प्रेम, सुग्रहणी, पऋतु, कर्मवाद आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित गाथाएँ हैं। विभिन्न प्रकार के पश, पुष्प, एवं सरोवर, दीपक, वस्त्र आदि उपयोगी वस्तओं के गण-दोषों का विवेचन भी इस ग्रन्थ में हुआ है। अतः यह काव्य मानव को लोक-मंगल की ओर प्रेरित करता है। आदर्श गृहणी अच्छी नागरिकता की जननी होती है। यह काव्य हमें बतलाता है कि
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