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महाराज सम्प्रति के शिलालेख
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पहले भी उसका कुछ सम्बन्ध अवश्य रहा होगा । यदि ऐसा नहीं होता तो वह धार्मिक पुस्तकों की रचना को महत्व नहीं देता, तिस पर भी ऊपर अनुमान का जिक्र है अतः इसे यहीं छोड़ते हैं।
उपरोक्त आठों प्रमाणों से हम सम्राट अशोक के बारे में निम्न लिखित बातें समझ सकते हैं।
(अ) उसका गद्दी पर आना और बिन्दुसार का मरण ई० प० ३३०, ३२६ है । प्रै० ४, ५ और ६ के अनुसार)
(ब) उसका राज्याभिषेक गद्दी पर आने के चार वर्ष बाद ई० पू० ३२५ में हुआ (प्रै० १, २, ३,५,६ और ८ के अनुसार ।
(स) उसका राज्य काल ई० पू० ३३० से ई० पू० २८६ तक ४१ वर्ष२७ देखिए (प्रै० ४) ___(द) उसका मरण ई० पू० २७० ( उसकी कुल आयु ८२ वर्ष की मानी जाती है अतः जन्म (२७० +९२) ३५२ वर्ष ई० पू० में मानना पड़ेगा ) । प्रै० नं०७ .
(इ) उसने राज्य की लगाम ई० पूर्व २८६ में छोड़ी२८ ( ऊपर 'स' देखिए) और उसका मरण२९ ई० पू० २७० में हुआ ( ऊपर 'द' देखिये ) इन दोनों कालों के बीच का १६ वर्ष का समय अशोक ने सन्यस्त दशा और प्रायश्चित करने में लगाया ऐसा ज्ञात होता है। .
(२७) उसके तीन भाग, प्रथम भाग चार वर्ष राजा के रूप में, फिर बाद के २३ वर्ष महाराज के रूप में और पिछले १४ वर्ष निरीक्षक के रूप में (४+ २३ + १४) कुल ४१ वर्ष ।
(२८) देखिए; क० इण्डि० एण्टीकरी ३२ पृ० २३३ । (२४) देखिए प्रमाण द ,,