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महाराज सम्प्रति के शिलालेख लिए अपने भाई के संरक्षण में अवन्ति ( उज्जयिनी ) में रख दिया था; क्योंकि अशोक को सदैव यह शंका वनी रहती थी कि ऐसा न हो कि पटरानी तिष्यरक्षिता कुमार कुणाल की जिन्दगी को खतरे में डाल दे या कोई षड्यन्त्र रचकर उसे मरवा डाले, जिससे उसके पुत्र महेन्द्र को गद्दी मिल सके । अन्त को अशोक का सन्देह यथार्थ ही सिद्धहुआ। - उस समय राजपरिवार की सारी चिट्ठी-पत्रियाँ विशेष दूतों (पत्र-वाहकों ) के हाथ भेजी जाती थीं। जब कुमार कुणाल की अवस्था शासन-कार्य का अनुभव प्राप्त करने योग्य हुई तब अशोक ने सोचा कि कुमार को अब इस विषय की शिक्षा दी जा सके तो बड़ा अच्छा हो । इसी लिए सम्राट अशोक ने अपने भाई को–जिसकी देख-रेख में कुमार कुणाल रखा गया थाविशेष पत्र लिखकर सूचित किया कि कुणाल को राजकाज की शिक्षा दी जाय । ........ यह पत्र अशोक ने लिखकर तो समाप्त कर दिया, किन्तु इसी बीच में कोई आवश्यक कार्य
आजाने से उस पर सही-सिक्का और सील-मुहर करने से पहले ही उठकर वह बाहर चला गया । इधर दैवात् रानी 'तिघ्यरक्षिता वहाँ आ पहुंची और उस खुले पत्र को देख कर चौंकी। उसने पत्र को उठाकर पढ़ा और मनचाहा दाँव
अचानक हाथ.लग,जाने से उसने उससे लाभ उठा लिया। पास काही पड़ी हुई बुहारी की सींक उठाकर उसने अपनी आँख में फिराई और उसमें लगे हुए काजल से पत्र में जहाँ "अध्ययन