Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 61
________________ 'प्रा० जै० इ० दूसरा भाग इससे प्रत्येक मनुष्य समझ सकता है कि 'प्रियदर्शिन्' एक विशेष नाम है, विशेषण नहीं'२४ । अभी तक कहीं भी यह पढ़ने में नहीं आया कि किसी पुरातत्त्व-विशारद ने प्रियदर्शिन् शब्द के विषय में जो प्रत्येक शिलालेख में सर्वत्र प्रयुक्त हुआ है-इस बात की खोज की हो कि वह विशेष नाम है या महाराज अशोक का उपनाम । (३१) अशोक के सभी शिलालेख सिकंदरशाह के समय २५ से लगभग ८० वर्ष बाद के सिद्ध होते हैं; और इस गणना से उनका समय ई० पू० ३२३-८० = ई० पू० २४३ वर्ष आता है। किन्तु महाराजा अशोक की मृत्यु तो ई० पू० २७० में ही हो चुकी थी, ऐसी दशा में वे शिलालेख अशोक के बनवाए हुए हो ही नहीं सकते । अतएव सम्राट् संप्रति का समय इस प्रकार निश्चित होता है: जन्म ई० पू० ३०४ (पौष मास-जनवरी ) अवस्था ० मास गद्दीनशानी" ३०३ " १० मास राज्याभिषेक" २८६ ( कदाचित् अक्षयतृतीया अथवा विजयादशमी हो, क्योंकि ये शुभ मुहूर्त माने जाते हैं) " १५ वर्ष महाराजा संप्रति ने अपना राजगद्दी अबंति अर्थात् उज्जयिनी में स्थापित की थी। उसे इसके प्रति हार्दिक प्रेम था, क्योंकि उसकी जन्मभूमि यही थी और उसकी बाल्यावस्था भी यहीं बीती _ (१२४) इंडियन ऐंटि०, पु० ३१, पृ० २३३ पर मि० पी० सी० मुकर्जी की टिप्पणी। (१२५) देखिए, सर कनिंगहम् "बुक आफ एंशियंट इराजा का पृष्ठ २।

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