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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग जानकारी का आधार मुख्यतः इस सुदर्शन तालाब का संशयात्मक लेख ही है ) तो भी यह तो निश्चिय ही है कि इतने विस्तृत प्रदेश पर उसने कभी सत्ता स्थापित ही नहीं की थी। किंतु सम्राट् संप्रति के दिग्विजय में२३ इन सब देशों का समावेश हो जाता है।
विशेष में सम्राट् संप्रति का यह वर्णन भी देखने में आता है कि वे श्रीसंघ के साथ२४ प्रति वर्ष श्री गिरनाजी की यात्रा के लिये जाते और यह सुदर्शन तालाब उस गिरिनारजी की तलहटी में बना हुआ होने से उसे दुरुस्त कराने की ओर यदि प्रजाजन ने उनका ध्यान आकर्षित किया हो और अपनी लोक-कल्याण एवं प्रजाहित२५ के कार्य करने विषयक स्वाभाविक प्रवृत्ति एवं उत्साहपूर्ण भावना के अनुसार यदि उन्होंने ऐसा किया भी हो तो आश्चर्य की कोई बात नहीं। इसी प्रकार रुद्रदामन और संप्रति के समय के बीच लगभग तीन सौ वर्ष का अन्तर पाया जाता है,२६ अतएव यदि जनता में दंतकथा रूप से प्रचलित
(२३) देखिए-पैरा २७ (पृ० ३६) और २६ (४० ४१) मिलान कीजिए पैरा नं. ७ ।
(२४) देखिए शिलालेख नं. ८ ( ऊपर के पैराग्राफ १५ ग, पैराग्राफ २७ ) परिशिष्ट पर्व भावनगर मुद्रित ।
(२५) उसने हजारों गाँवों में कुए, तालाब, बावड़ी, धर्मशालाएँ, दानशालाएँ, जैनमंदिर आदि बनवाए हैं । भावनगर मुद्रित परिशिष्ट पर्व अनुवाद पृ. २१०-८ और आगे बतलाए हुए वर्णन से तिलान कीजिए।
(२६) सम्राट् संप्रति की मृत्यु ई. पू. २३० के आसपास है, जब कि रुद्रदामन् का अस्तित्व ई. स. १५० में था।