Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ ६८ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग लिए थे - ये सब राजा प्रियदर्शिन के लिये ही यशोगानरूप विशेषण हैं । और ये सब उनके नाम के साथ ही समय रूप से लागू हो सकते हैं, अन्य किसी भी राजा के लिये वे सम्यक् रूप से प्रयुक्त नहीं हो सकते । ( पूर्ति लेख ) पदच्युत महाराजा अशोक के लेख की पूर्ति ( १ ) रॉयल एशियाटिक सोसायटी पु० १८८७ पृ० १७५ की टिप्पणी में लिखा है कि- “ The testimony of Megarsthenes would likewise seem to imply that Chandragupta submitted to the devotional teachings of the Shramanas as opposed to the doctrines of the Brahmins." २० इस वाक्य से दो बातें सिद्ध हो सकती हैं । प्रथम तो यह कि चन्द्रगुप्त प्रथमतः ब्राह्मण धर्म पालता रहा होगा, किन्तु पीछे से उसने जैनधर्म को स्वीकार किया होगा; दूसरी बात यह कि मेगेस्थेनीज के समकालीन रूप में तो नहीं, किन्तु पुरोगामी रूप में चन्द्रगुप्त का समय होगा । किन्तु ग्रीक लेखकों ने मेगेस्थेनीज को चन्द्रगुप्त उर्फ सेंड्रे कोट्स के दरबार में एलची होने की बात लिखी है । सारांश यह कि ग्रीक लेखकों का १०, तथा १३ टिप्पणी नं० ६ पैराग्राफ ७ "अशोक" पृष्ठ १५६ - १५८ इण्डि० एंटि० पृष्ठ १७ - १८ पैरा २७ श्रादि देखिए । (२८) श्रवणबेलगोला का शिलालेख देखिए । दे० ० रा० भांडारकर कृत १६११ पृ० ११ के ऊपर

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84