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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग को सूबा के रूप में नियुक्त करता था, उसी प्रकार सौराष्ट्र प्रान्त ( काठियावाड़) पर शालिशुक" नाम के पारिवारिक जन को नियुक्त किया था, और उसकी देख-रेख में ही उसने उक्त तालाब की दुरुस्ती कराई थी। इसी लिए राजा रुद्रदामन् ने इन सारे विशेषणों का प्रयोग सम्राट प्रियदर्शिन को लक्ष्य करके ही किया है; और अपने सुकृत्यों की प्रशंसा के लिए केवल तुलना के स्वरूप में उन्हीं को शिलालेखों के अन्तिम भाग पर विहंगम-दृष्टि से ही खुदवा दिया है। क्योंकि वह खुद अनुवादक की टिप्पणिएँ:
( ६ ) अशोक के लेख-प्रो० हुल्ट्श कृत Pre XXXVII Seg. 'अशोक-चरित्र' ग. व० सो० कृत पृ० ४१-४६, Bhandarker, Asoka, PP. 49-59.
[एक ] नेपाल में देवपाल को ( बिसेंट स्मिथ कृत तीसरी आवृत्ति पृ० १९६-७ ) [ दो ] मगध मैं दशरथ को ( देखिए नागार्जुनी गुफालेख) [तीन ] कलिंग में तोसलीपुत्त को [ चार] सत्यपुत्र को [पाँच केरलपुत्र को [ छः] उज्जयिनी में सूबा बनाया था। इनमें से प्रथम चार का तो उल्लेख इसी रूप में किया है, शेष दो को दूसरे रूप में बतलाया गया है।
(७) देखिए बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ७६, अङ्क ३, पृ० १२ में, जहाँ कि गर्गसंहिता पर विवेचन किया गया है। विंसेंट स्मिथ कृत अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, तीसरी श्रावृत्ति, पृ. २०४, टीका नं. १
पृ० १६४, टीका नं० १, पृ० २८८ तथा पृ० २०७ नं । .. .....( ८.) देखिए इसी लेख में की तीस दलीलों में से नं०.२ और ३ । :: : (१) परिशिष्ट की दलील नं. १-२-३ में प्रयुक्त समस्त विशेषण तथा तीस दलीलों में से नं० २-३ और ४ के साथ तुलना कीजिए