________________
१५
महाराज सम्प्रति के शिलालेख
ईसा पू० ३१६ + ६६ = ई० पू० ३८२ होता है और वह द्वितीय पैराग्राफ के अनुसार ठीक भी उतरता है।
(४) जैन पुस्तकों में लिखा है कि चन्द्रगुप्त ने नंदवंश का नाश३४ महावीर संवत् १५५ (ई० पू० ३७२) में किया। ई० पू० ५२६-१५५ ३७१-२ हुए।
(ऊपर के प्रथम पैरेग्राफ़ से मिलाइए)। (५) मौर्य वंश की स्थापना= चन्द्रगुप्त का गद्दी पर आना बुद्ध सं० १६२ में है ।३५ अर्थात् चन्द्रगुप्त ई० पू० ५४४-१६२ = ३८२ ई० पू० में गद्दी पर बैठा । ___ उपरोक्त ६ हों प्रमाणों के मिल जाने पर यह स्पष्ट होगया है कि सम्राट चन्द्रगुप्त के बारे की निम्नलिखित बातें सिद्धि-सी हैं।
(अ) मौर्यवंश की स्थापना अर्थात् चन्द्रगुप्त का राज्याधिकार ई० पू० ३८२ है। (पैराग्राफ २,३ और ५)
(ब) मगध की गद्दी पर उसका राज्याभिषेक हुआ किंवा नंद वंश का अन्त हुआ ई० पू० ३७२ में । (पैराग्राफ २ और ४ देखिए )
(स) इसके उपरान्त पुराणों में, बौद्ध पुस्तकों तथा जैन ग्रन्थों आदि सब में३६ चन्द्रगुप्त का राज्य काल २४ वर्ष होना लिखा है, इस हिसाब से ई० पू० ( ३८२-२४) ३५८ में उसका
(३४) ऊपर की टीका नं. ३१, ३२ को मिलाइए। हेमचन्द्राचार्य का कहना है कि जब यह घटना हुई उस समय वीर सं० १५५ थी। (केम्ब्रिज हिस्ट्री श्राफ इण्डिया पु० १ पृ० १५६) ।
(३५) इण्डियन एस्टीकरी ३.२ पृ० २२७ ।
(३६) इन्स्क्रीप्शन श्राफ अशोक, प्रो. हुल्टश पु. १ प्रस्तावना XXXII देखिए।