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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग (१३) पाँचवें स्तम्भ लेख में सम्राट् प्रियदर्शिन का पाटलीपुत्र शहर में तथा अन्य शहरों में उसके भाई, बहिन तथा अन्य कौटुम्बिक लोगों का होना बतलाया है। इधर अशोक के लिए ठीक इसके विरुद्ध बात बतलाई जाती है, कहा जाता है कि उसने गद्दी पर बैठते ही अपने राज्याभिषेक के पूर्व ही केवल एक भाई को छोड़ कर दूसरे सारे भाई बन्धुओं को कत्ल कर डाला था, जिससे वह अपना राज्य निष्कंटक होकर कर सके । इधर राजा प्रियदर्शन के पुत्र तथा दूसरी रानियों के पेट से भी पुत्रों का उल्लेख दिल्ली, टोपरा के स्तम्भलेख नं०७ में भी किया है। इन सब बातों से तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये कृतियाँ अशोक की नहीं १।
(१४) ग्रीक लेखक मि० जस्टीन के मतानुसार सेण्ड्रोकोट्स अर्थात् चन्द्रगुप्त का शासन जुल्मी ६ था, जब कि भारतीय इतिहास से यह बात किसी भी भाँति प्रमाणित नहीं होती।
इस कथन से ही स्थिति सादृश्य समझाया जा सकता है कि मिस्टर जस्टिक तथा मि० स्ट्रवो ने योरप के पुरातत्व विशारदों ने सेण्ड्रोकोट्स को चन्द्रगुप्त समझा कर किस भाँति भ्रम में डाला
प्रदेश अनार्य प्रदेश ही माने जाते थे। उससे ही जैसे अफगानिस्तान, ईरान, अरब, ग्रीस, सीरिया श्रादि देशों में राजा प्रियदर्शिन का अपने धर्मोपदेशकों का भेजना लिखा है, वैसे ही दक्षिण के अनार्य देशों में भी भेजने का ज़िक्र है।
(८६) देखिए केम्ब्रिज हिस्ट्री आफ़ इण्डिया पु० १ पृ० ४७३ तथा पृ० में टीका नं० ४५ ।