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प्रा० जै०३० दूसरा भाग
लिये रवाना हुए। कुएँ बनवाए, धर्मशाला और दानशाला
आदि स्थापित की, अनेक मन्दिर निर्माण कराए, जैन बिम्बों को भराया और अंजन-शलाका कराई । इसी प्रकार अनेक शुभ कार्य सम्पन्न किए। ___ इन सब बातों के लिए किसी प्रकार के प्रमाण या टीका अथवा स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। शिलालेखों में लिखित समस्त वर्णन से भी उसका समर्थन होता दिखाई देता है।
(शिलालेख नं० ८ में ) उनके राज्याभिषेक के बाद नवें वर्ष आठ व्रत ११९ ग्रहण करने की बात लिखी है। इससे पहले एक वर्ष तक वे संघ के साथ रहे और इसके पूर्व ढाई वर्ष उन्होंने उपासक के रूप में व्यतीत किये थे । अर्थात् उन्होंने राज्याभिषेक होने के ( १० वर्ष में से १+२३ = ३३ घटाने पर शेष ६॥ वर्ष) ६॥ वर्ष बाद जैनधर्म में प्रवेश किया था।
आगे चलकर फिर उनकी जीवनी के विषय में लिखा है कि १२० उन्होंने अपनी युवावस्था में भारत के समस्त राजाओं को करदाता बना दिया; और अष्टक के निकट आकर सिन्धु नदी पार करने के बाद अफगानिस्तान के मार्ग से ईरान, अरब और मिस्न आदि देशों१२१ पर अधिकार किया और उनसे
(११९) श्रावक के बारह व्रत हैं। उनमें पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत और चार शिक्षाव्रत होते हैं । किन्तु इनमें शिक्षा व्रत ही ऐसे हैं जिनका पालन सांसारिक गृहस्थों से भलीभाँति हो सकता है। राज्यकर्ता के लिए दुस्साध्य होने से सम्प्रति ने आठ ही व्रत ग्रहण किए थे।
(१२०) उपर्युक्त ग्रन्थ की टीका नं० ११७ देखिए । (१२१) इसी लेख के पैरा नं० ७ और नं० २६ से मिलान कीजिए।