Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 48
________________ महाराज सम्प्रति के शिलालेख 88 (ओलियाँ) आती हैं ( आश्विन और चैत्र मास में ) तथा पर्यूषण पर्व की अठाई भी आती है। ये सब जैन धर्म के पवित्र दिन माने जाते हैं और इन दिनों में किसी भी प्रकार की हिंसा होने से रोकने का प्रयत्न करना आवश्यक है तथा यहजैन धर्म के भक्त प्रियदर्शिन् राजा का प्रथम कर्तव्य माना जा सकता है । (२१) नीचे लिखे शब्द जैन धर्म के ही पारिभाषिक शब्द हैं - पचपगमन' 1903 [ संस्कृत शब्द प्रत्युपगमन ] ( स्तंभलेख नं० ६ ) कल्याण और पाप इन दो शब्दों के अर्थ का अन्तर ( शिलालेख नं० ५ ) पंचगुति १०४ [ वाचागुप्ति अथवा वचनगुप्ति ] ( शिलालेख नं० १२ तथा ७) तथा इन शब्दों के स्थान पर 'संयम' और 'भावशुद्धि' का प्रयोग किया गया है, सिनव [ श्रव ] ( शिलालेख नं० १०, स्तम्भलेख नं० २ ) समवाय ( शिलालेख नं० १२ ) निझपयि सन्ति ( स्तंभलेख ४ ) भदंत ( बाभ्रा लेख ) थेरा १०५ [ दे० रा० भांडारकर, पृष्ठ ६८ ] ये शब्द १०६ अन्य धर्मों में उपयोग में आते नहीं दिखाई देते । (२२) सिनव ( श्रव ) पाप प्राण, भूत, जीव, सत्त आदि सभी समानार्थी शब्दों की जोड़ी के विषय में भी दे० रा० ( १०३ ) " प्रतिक्रमण " शब्द के साथ मिलान कीजिए । (१०४ ) आठ प्रवचन माताएँ गिनाई गई हैं – पाँच समिति +तीन गुप्ति = आठ । इनमें तीन गुप्तियों के नाम हैं मनगुप्ति, वचनगुप्ति कायति । ० रा० (१०५ ) बौद्ध धर्म में भिन्तुक शब्द का प्रयोग होता हैभांडारकर - कृत अशोक, पृ० १८ । क : : ( १०६ ) पैरा २१ में बतलाए हुए इस शब्द के अर्थ का स्पष्टीकरण करने का यह स्थान नहीं है ।

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