Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 35
________________ २८ प्रा० जे० इ० दूसरा भाग पाँच सालों में से किसी से भी कोई मेल नहीं मिलता प्रत्युत उस के विरुद्ध ५०-६० वर्ष पहले चला जाता है । इससे यह निश्चित हो जाता है कि प्रियदर्शन और अशोक दो व्यक्ति हैं । ७३ ( - ) जनरल सर कनिंगहम 3 का मत है कि "शिलालेखों तथा स्तम्भ लेखों में लिखे हुए प्रियदर्शन राजा के अशोक होने के बारे में प्रो० विल्सन अंत तक निश्चित नहीं कर पाये थे ।" पुरातत्व के ऐसे प्रचंड अभ्यासी व्यक्ति का जब ऐसा मत है उस समय प्रियदर्शन अशोक ही है यह निश्चय पूर्वक कह देने में अधिक नहीं तो कुछ कुछ कठिनाई तो होगी । का ( १ ) रूपनाथ, वैराट और सहस्राम के लेखों में७४ २५६ है जिनका वर्तमान लिपि ज्ञाताओं ने यह अर्थ किया कि " पूजा में २५६ रात्रि बीत जाने के बाद" किन्तु ठीक अर्थ यह कि " सद्मत् के देव पाने के बाद २५६ वें वर्ष में" यह अर्थ तो अभी थोड़े ही काल से माना जाने लगा है इसके पहले तो पहला ही अर्थ माना जाता था । ( ७३ ) को० इन्स्क्रीप्शन्स इण्डीकेरम पृ० ४ ( ७४) देखिए - इण्डियन एण्टीक्वेरी १६१४ पृ० १७३, डा० बुलहर इण्डियन एण्टीक्वेरी VI पृ० १४६ और श्रागे; डीटो० २२ पृ० २६६ और आगे; एथीग्राफ़िका इण्डीका III पृ० १३४ और आगे; डा० प्लीट ज० रा० ए० सो० १६०४ पृ० १ वगैरह इन सब में यह लिखा है कि सिद्धपुर, सहस्राम तथा रूपनाथ के शिलालेखों में जो २५६ का श्रंङ्क है उससे बुद्ध निर्वाण के वाद २५६ वर्ष समझना | इस बात को डा० F. W. थोम्स ने एक दम ग़लत सिद्ध कर दिया है ।

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