Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 23
________________ १६ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग राज्य काल समाप्त हुआ, और उसका राज्य काल ई० पू० ३८२ से ३५८ तक २४ वर्ष है । यहाँ तक मौर्यवंश के पहले के तीन राजाओं का काल निर्णय कर चुके हैं और वह निम्नलिखित प्रकार से सिद्ध हुआ हैं । पर बैठना राज्याभिषेक राज्य का अंत राज्य का काल ई० पू० क्रम राजा ई० पू ई० पू० ३८२ ३५८३८ ३३० १ चन्द्रगुप्त २ बिन्दुसार ३ अशोक ३७२-१ ३४५३९ ३२५-६ ३५८३७ ३३० २८६ २४. २८४० ४१ ( ३७ ) वास्तव में तो इसने ई० पू० ३५८ में जैन दीक्षा ही ली है और उसके बाद बहुत वर्षों तक दक्षिण भारत में श्रवण वेल गोला के पास चन्द्रगिरि पर्वत पर ( जिसका नाम ही चन्द्रगुप्त के नाम से चन्द्रगिरि पड़ गया है ) रहकर तथा अनशन करके स्वर्गवासी हुआ है । भद्रवाहु स्वामी जब दक्षिण गए उस समय यह उनके साथ विहार में जाता । (३८) जैन मतानुसार उसने १६ वर्ष राज्य किया है, यह बात ठीक उतरती है ३३० - १६ अर्थात् ईसा पूर्व ३४४-४५ में राज्याभिषेक हुआ माना है इस बीच में ई० पू० ३५८ से ३४५ तक चन्द्रगुप्त स्वयं साधु रूप में जीता रहा होगा । इसीसे अपने बाप के जीते जी बिन्दुसार गद्दी पर नहीं बैठा होगा, इससे यह भी प्रकट होता है कि चन्द्रगुप्त की मृत्यु ई० पू० ३४५ में हुई होगी । (३६) देखिए ऊपर की टीका नं० ३८ । (४०) पुराणों में २५ वर्ष लिखा है और बौद्ध पुस्तकों में २८ वर्ष लिखा है ( प्रो० हुंल्टश, अशोक का लेख, पु० १ पृ० XXXII ) जैन मतानुसार उसका राज्य काल मात्र १६ वर्ष है । इस तरह बौद्ध और जैन दोनों मत मिलतें हुए हैं देखिए नोट ३८ का खुलासा । ( ४१ ) ऊपर पैराग्राफ ५ पृष्ठ ७० में देखिए ।

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