Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 41
________________ ६] प्रबन्धचिन्तामणि [ प्रथम प्रकाश चारों ओर कहीं जल नहीं मिला तो एक पशुपालको देखकर उससे जल मांगा । उसने जलके अभावमें दूध पीनेको कहा और बोला कि - ' कर चंडी ' करो । उसके ऐसा कहने पर व र रुचि बड़ी चिन्तामें पड़ गया, क्यों कि उसने इसके पहले यह शब्द किसी भी कोष ग्रंथमें नहीं पढा सुना था । उस पशुपालने उसके मस्तक पर हाथ रखकर और भैंसके नीचे बिठाकर, दोनों हथेलियों को जोड़कर 'करचंडी' नामक मुद्रा बताकर, उसे पेट भर कर दूध पिलाया । उस ( उपाध्याय ) ने अपने मस्तक पर हाथ रखनेके कारण और एक ' करचंडी ' इस विशेष शब्द बतानेके कारण, उसे गुरुके समान समझा और फिर उसको ही उस राजकुमारीका समुचित पति निश्चित किया । भैंसोंसे हटाकर उसे अपने महलमें ले आया और ६ महिने तक उसके शरीरकी शुश्रूषा करते हुए " ओं नमः शिवाय " इस आशीर्वादको पढ़ाया । ६ महिने बाद जब पण्डितने समझ लिया कि ये अक्षर उसे कण्ठस्थ हो गये हैं तो एक दिन शुभ मुहूर्त में उसको अच्छी तरह शृंगार कराके उसे राजसभा में ले गया । राजाको आशीर्वाद देते समय, बहुत बारका अभ्यस्त वह आशीर्वाद भी, सभाक्षोभके कारण "उशर ट" इस प्रकारके शब्द में बोल गया । उसकी इस ऊटपटांग बातसे राजा विस्मित हुआ । व र रुचि ने उसकी [ मूर्खता छिपाने और ] चतुरता बतानेके लिये राजाके सामने कहा 8. उमाके साथ रुद्र जो, शङ्कर और शूलपाणि है । रक्षा करें तुम्हारी हे राजन्, टंकारके बलसे जो गर्वित है ॥ " इस प्रसिद्ध श्लोकद्वारा [ जिसके चारों चरणोंके प्रथमाक्षरोंसे ' उशरट शब्द बनता है ] वर रुचि ने उसके पाण्डित्यकी गंभीरताका विस्तारपूर्वक विवेचन किया । उसकी बातसे प्रसन्न होकर, राजाने उस भैंस चरानेवालेसे अपनी पुत्रीका विवाह कर दिया । पर पण्डितके सिखानेसे वह सदा मौन ही रहा करता । राजकन्याने उसकी चतुरता जाननेके लिये, कोई नई लिखी हुई पुस्तकके संशोधनका उससे अनुरोध किया । उसने उस पुस्तकको हथेलीपर रखकर, नहरनी लेकर, सारे अक्षरोंको बिंदु और मात्रासे रहित कर दिया । उसे ऐसा करते देख राजपुत्रीने निर्णय किया कि यह तो मूर्ख है । तबसे सर्वत्र ही ' जा मातृ शुद्धि " की कहावत प्रचलित हुई। एक बार दीवाल परके चित्रमें भैंसोंका झुण्ड देखकर आनंदित होकर, वह अपनी प्रतिष्ठा भूल गया और उनके बुलानेकी विकृत बोली बोलने लगा । तब राजकुमारीने निश्चय किया कि यह निरा पशुपाल - भैंसों का चरवाहा है । फिर वह ( चरवाहा ) राजकन्याकी अवज्ञा देखकर विद्वत्ताके लिये कालिकाकी आराधना करने लगा। अपनी पुत्री वैधव्यसे शंकित होकर राजाने' रातके समय गुप्त वेशमें दासीको भेजा । उसने यह कहकर कि- 'मैं तुझे तुष्टमान हुई हूँ' ज्यों ही उठाने लगी त्यों ही विप्लवकी आशंकासे, स्वयं कालिका देवीने ही प्रत्यक्ष होकर उसे अनुगृहीत किया । इस वृत्तान्तको सुनकर राजकुमारी प्रमुदित हुई और आकर बोली कि - ' क्या कुछ विशेष वाणी प्राप्त हुई है ? ' उसके ऐसा कहनेपर वह तभीसे कालिदास नामसे प्रसिद्ध हुआ और उसने कुमारसंभव प्रभृति ३ महाकाव्य और ६ प्रबंध बनाये | - इस प्रकार यह कालिदासकी उत्पत्तिका प्रबंध है ॥ १ ॥ " १ ' जामातृ शुद्धि' की कहावत हिंदी में या गुजराती भाषा में प्रचलित हो ऐसा ज्ञात नहीं हुआ; लेकिन मराठी भाषा में 'जवांइ शोध' नामकी कहावत प्रचलित । विक्रमकी और और कथाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है इससे ज्ञात होता है। पुराने समयमें यह कहावत गुजरात आदि देशों में भी प्रचलित होगी । २ पुत्रीको वैधव्य प्राप्त होनेकी शंका राजाको इसलिये हुई कि वह पशुपाल आमरणांत उपवास करने की प्रतिज्ञा करकेदेवीकी आराधना करने बैठा था । मेरुतुंगसूरिका यह ग्रन्थ बहुत ही संक्षिप्त शैली में लिखा हुआ है, इसलिये इसमें बहुत सी बातें अध्याहृत रहती हैं । दूसरे निबन्धों में ये बातें खुलासे के साथ लिखी हुई मिलती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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