Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 64
________________ प्रकरण ३७ ] मुञ्जराज प्रबन्ध [२९ [३२] हे स्वामिन् ! यह महेता (महत्तम महामात्य ) विनति करता है कि-अब हमारा यह आखिरी जुहार (नमस्कार ) हो । हमें [ जानेका ] आदेश हो । क्यों कि हम तुम्हारे सिरपर राख पडती देख रहे हैं। इस प्रकार मंत्री निषेध करने पर भी वह सेनाके साथ चला ।] [मंत्रीने आखिर में कहा कि-] गोदावरी नदीको सीमा मान उसे लाँधकर आगे प्रयाण न कीजियेगा। इस प्रकार मंत्रीने शपथ देकर आगे न जानेके लिये रोका था; तथापि मुञ्ज ने यह विचार कर कि पहले छ बार उसे जीता है, जोशमें आकर उस नदीको पार करके, सामने किनारे जाकर पड़ाव डाला । रु द्रा दित्य ने जब राजाके उस वृत्तान्तको सुना, तो उसकी अविनयशीलताके कारण कोई भावी विपद आनेवाली है, यह सोचकर स्वयं चिताग्निमें प्रवेश किया । इसके अनन्तर तै लिप ने छल और बलसे उसकी सेनाको तितर-बितर कर मु अ राजा को गिरफ्तार कर लिया और मूंजकी रस्सीसे बाँध उसे कारागारमें बन्द कर दिया । काठके पिंजड़ेमें उसे रक्खा गया था और राजा तै लिप की बहन मृणा ल व ती उसकी परिचर्या करती रहती थी। मुज का उसके साथ पत्नीका-सा स्नेह सम्बन्ध हो गया। उधर पीछे रहे हुए उसके मंत्रियोंने एक सुरंग खुदवाई और उसके जरिये मुञ्ज को संकेत करवाया । इतनेमें, एक बार जब वह दर्पणमें अपना प्रतिबिंब देख रहा था, तो उसी समय मृणा ल व ती, अनजानमें, पीछे आ खड़ी हुई । उसने भी दर्पणमें अपने बुढ़ापेके जर्जर मुखको देखा और फिर देखा कि युवक मुञ्ज रा ज के मुँहके पास उसका मुँह अत्यन्त भद्दा दिखाई दे रहा है। इसलिये उसे उदास होते देख मुञ्ज ने कहा ३६. मुञ्ज कहता है कि-ऐ मृणालवती ! गये हुए यौवनको झुरो मत; यदि सक्करकी डली पीसी जा ___ कर सैंकड़ों टुकड़ोंमें छिन्न-भिन्न हो जाय, तो भी वह मीठी चूर ही लगती है। ___ इस प्रकार कह कर [ उसे शान्त बनानेका प्रयत्न किया ], बादमें अपने स्थानको जानेकी इच्छावाला होते हुए भी मृ णा ल व ती का विरह वह नहीं सह सकता था, और भयसे उसे वह वृत्तान्त भी कह नहीं सकता था । बार बार [मृ णा ल व ती के] पूछनेपर भी, अपनी चिन्ता न कह सका । बिना नमककी और अधिक नमक दी हुई रसोई खाकर भी जब वह उसका स्वाद नहीं जान सका तो, मृणाल व तीने अत्यंत आग्रह और प्रेमपूर्वक पूछा; तब बोला कि मैं इस सुरङ्गके रास्ते अपने घर जानेवाला हूँ । यदि तुम भी वहाँ चलो तो मैं तुम्हें पटरानीके पदपर अभिषिक्त करके अपने प्रसादका फल दिखाऊं। इसपर उसने कहा कि क्षणभर प्रतीक्षा करो; तब तक मैं अपने गहनोंकी सन्दूक ले आऊं। यह कहकर उस कात्यायिनी ( ढलती उमरकी विधवा ) ने सोचा कि यह वहाँ जाकर मुझे छोड़ देगा, अपने भाई राजासे वह वृत्तान्त जाकर कह दिया । इस पर वह राजा, उसकी विशेष विडम्बना करनेके लिये, उसको बन्धनमें बाँधकर प्रतिदिन भिक्षाटन कराने लगा। वह घर घर घूमता हुआ, खिन्न होकर उदासीके इन वचनोंको बोला करता । जैसे कि ३७. वे नर मूर्ख है जो स्त्रीपर विश्वास करते हैं; जिस स्त्रीके चित्तमें सौ, मनमें साठ, और हृदयमें बत्तीस ___ आदमी बसा करते हैं। और भी३८. यह मुञ्ज जो इस प्रकार रस्सीमें बन्धा हुआ बंदरकी तरह घुमाया जा रहा है, वह बचपन-ही में झोलीके टूट जानेसे गिरकर क्यों न मर गया, या आगमें जल कर राख क्यों न हो गया । तब किन्हीं सज्जन पुरुषोंने दिलासा देते हुए कहा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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