Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ १०६ ] प्रबन्धचिन्तामणि [ चतुर्य प्रकाश मंत्री आम्रभटका शकुनिका विहारका उद्धार करवाना। १४६) इसके बाद, समस्त विश्वके एक अद्वितीय ऐसे सुभट आम्र भट ने पिताके कल्याणार्थ भृगुपुर (भरूच) में श कुनि का विहार प्रासादके उद्धारका कार्य प्रारंभ किया | उसके लिये गहरी नींव खोदते समय, नर्मदा नदी के निकट होनेके कारण अकस्मात् वह नींव धंस पड़ी और काम करने वाले मजदूर उसमें दब गये । उसने यह देख, कृपा-परवश हो कर, अपनी अत्यन्त निन्दा करते हुए, उसीमें अपने आपको भी गिरा दिया । इस अनुपम साहसके प्रभावसे वह विघ्न शान्त हो गया (सब लोक बच गये )। इसके बाद, शिलान्यासपूर्वक सारा प्रासाद तीन वर्षमें पूरा हुआ। कलश-दण्डकी प्रतिष्ठाका अवसर आने पर समस्त नगरोंके संघोंको निमंत्रण दे कर बुलाया गया और उन सबको यथोचित वस्त्र और आभरण आदि दे कर सत्कृत किया गया और फिर सबको यथास्थान वापस पहुँचाया गया। लग्न समयके निकट आने पर भट्टारक श्री हे मचंद्र सूरि के नेतृत्वमें राजाके साथ अण हि ल्ल पुर के संघको निमंत्रित कर उसे अतुलित वात्सल्यादि तथा भूषण आदि दानों द्वारा सन्तुष्ट करके, ध्वजाधिरोपणके लिये घरसे चला । इस समय अपने सारे घरको मानों याचकजनोंसे लुटवा दिया । श्री सुव्रतदेवके प्रासादमें महाध्वजके साथ ध्वजारोपण करके, अत्यधिक हर्षके कारण, वह अनालस्य भावसे नाच करता रहा । अन्तमें राजाकी अभ्यर्थना पर, उसने आरती उतारी । अपना घोड़ा द्वारपालको दान कर दिया । राजाने स्वयं उसको तिलक किया । बहत्तर सामन्त चामर और पुष्प वर्षा आदिसे उत्साह बढ़ा रहे थे। उस समय आये हुए बंदीको अपना कंकण दे दिया। अन्तमें राजाने हाथ पकड़ कर जबर्दस्ती उसे बैठाया और आरती और मंगल प्रदीप उतरवाये । श्री सुव्रतदेवके तथा गुरूके चरणमें प्रणाम करके, बन्धुओंको बन्दना आदि करके, राजासे शीघ्र आरती उतरवानेका कारण पूछा। राजाने कहा-'कि जैसे जुआडि अत्यधिक द्यूत-रसके आवेशमें अपने सिरको भी दाँव पर रख देता है, वैसे ही तुम भी इसके बाद कहीं अर्थियोंके माँगनेसे त्यागके आवेशमें आ कर अपना सिर भी उन्हें न दे डालो'। राजाके इस प्रकार कह चुकने पर, उसके लोकोत्तर चरित्रसे हृत-हृदय हो कर श्री हे मा चार्य ने भी, जिन्होंने जन्मकालसे ही किसी मनुष्यकी स्तुति नहीं की थी, कहा१९२. उस कृतयुगसे [ हमें ] क्या [ मतलब ] है जिसमें तुम नहीं थे । और जिसमें तुम [ विद्यमान ] हो वह कलि कैसा। और यदि कलिहीमें तुमारा जन्म होता है तो वह कलि ही सदा रहो कृतसे क्या मतलब है। इस प्रकार आम्र भट की अनुमोदना करके दोनों क्षमापति, जैसे आये थे वैसे ही वापस गये। आम्रभटका शाकिनीग्रस्त होना। १४७) इसके बाद, जब हे म चंद्र अपने स्थान पर पहुँचे तो उन्हें यह विज्ञप्ति मिली कि आकस्मिक रीतिसे देवी ( शाकिनी ) के दोषसे ग्रस्त हो कर आम्र भट की अन्तिम दशा उपस्थित हो गई है और आपको शीघ्र बुलाया गया है। उन्होंने तत्काल ही समझ लिया कि ' वह महामना जब प्रासादके शिखर पर नृत्य कर रहा था उसी समय मिथ्यादृष्टि देवियोंका कुछ दोष उसे हुआ है।' यह सोच कर, सायंकाल ही को तपोधन य श श्चन्द्र को साथ ले, आकाशगामिनी शक्तिसे उड़ कर निमेषमात्रमें, भृगुपुर की प्रान्तभूमिको अलंकृत किया और सैन्ध वा दे वी का अनुनय करने के लिये कायोत्सर्ग किया । उस देवीने जीभ निकाल कर उनका अपमान किया । तब उखलमें शालि - चावल डाल कर य श श्चन्द्र ग णि ने मूशलसे प्रहार करना शुरू किया। पहली बारके प्रहारमें प्रासाद काँपने लगा, दूसरी बार प्रहार देने पर वह देवी ही अपने स्थानसे उखड़ कर - ' इस वजFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192