Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 179
________________ १४४ ] प्रबन्धचिन्तामणि [ पंचम प्रकाश तुम मेरी पीठपर पैर रख कर जा कर म्लेच्छराजको मार डालो'। पिताके ऐसा आदेश करनेपर उसने कहा कि'यह काम मेरे लिये साध्य नहीं है कि अपने जीवनकी आकांक्षासे मैं पिताकी मृत्यु देखू !; सो मैं ही इसमें पड़ता हूं और आप ही मेरी पीठपर पैर रख कर उसका अन्त कर डालें। उसके वैसा करनेपर, स्वामीके कार्यको सिद्धप्राय हुआ मान कर आसानीसे उसने शत्रुको मार डाला और फिर जैसे आया था वैसे ही घर लौट गया। जब प्रभात होनेको आया तो अपने स्वामीको मरा देख कर वह म्लेच्छ सेना दीन हो कर भाग गई। गंभीरप्रकृति होनेके कारण उस तुंग सुभटने राजाको वह कुछ भी हाल नहीं बताया। किसी समय, राजमान्य होनेके कारण अत्यंत परिचित ऐसी उस तुंग सुभटकी पुत्रवधूको मंगलदर्शक हस्तकंकणसे रहित देख कर, राजाने संभ्रमभावसे उसका कारण पूछा । समुद्रकी नाई गंभीर होनेके कारण, मौनमर्यादाके साथ प्रथम तो उसने कुछ भी नहीं बताया । तब राजाने अपनी शपथ दे कर पूछा । इस पर उसने यह कह कर कि-' यद्यपि अपना गुण कथन करना मेरे लिये दुष्कर कार्य है तथापि आज्ञा होने निवेदन करना पड़ता है' ऐसा कह कर प्रत्युपकारभारु हो कर उसने वह वृत्तान्त जैसा घटा था वैसा ही निवेदन किया। २५९. उच्च बुद्धिवाले मनुष्योंके चित्तकी यह कोई बडी ही अलौकिक कठोरता है कि किसीका उपकार करके फिर वे दूसरेसे प्रत्युपकार पानेके भयसे उनसे निःस्पृह हो रहते हैं। इस प्रकार यह तुंगसुभट प्रबंध समाप्त हुआ। पृथ्वीराजका म्लेच्छोंके हाथ मारा जाना । २१६) इसके अनन्तर, फिर कभी, उस म्लेच्छराजका पुत्र पिताका वैर स्मरण करके सपादलक्षके राजा पृथ्वी राज के साथ युद्ध करनेकी इच्छासे बडी तैयारीके सहित चढ़ कर आया । पृथ्वी राज की सेनाके वीर धनुर्धरोंके, वर्षाकालकी मूसलधार वृष्टिकी नाई बरसते हुए, बाणोंकी मारसे वह स-सैन्य भगा दिया गया और फिर पृथ्वीराजने उसका पीछा किया। इस समय भोजन-विभागके अधिकारी पञ्चकुलने कहा कि'सात सौ सांढनियां जो भोजनकी सामग्री ढोती हैं वे पर्याप्त नहीं हैं, इसलिये महाराज कुछ और सांढनियां देनेकी कृपा करें'। राजा यह सुन कर बोला कि - ' म्लेच्छराजको मार कर उसके ऊँटोंका झुंड कब्जे किया जायगा, और फिर तुम्हें माँगी हुई सांढनियां देनेका प्रबन्ध किया जायगा'। ऐसा कह कर उसे समझा दिया और फिर जब आगे प्रयाण करने लगा तो सो मे श्व र नामक प्रधानने वारंवार निषेध किया। राजाने इस भ्रमसे कि वह उस (म्लेच्छ ) के पक्षमें है, उसके कान काट लिये । इस अत्यन्त पराभवके कारण, वह अपने स्वामीसे कुपित हो कर उस म्लेच्छपतिके पास चला गया। उसको अपना पराभव-वृत्तान्त कह कर, उसके मनमें विश्वास बिठाया और उसको पृथ्वी राज के पड़ावके पास ले आया । पृथ्वी रा ज एकादशीके पारणाके पश्चात् जब सोया हुआ था तो उसकी सेनाके वीरोंके साथ म्लेच्छोंकी लड़ाई छिड़वा दी । राजा गाढी नींदमें सो रहा था । उसी अवस्थामें तुर्कोने उसे कैद कर लिया और वे अपने स्थानमें ले गये। फिर दूसरी एकादशीके पारणाके अवसरपर, जब वह राजा [ कैदीकी हालतमें ] देव-पूजा कर रहा था, उस समय म्लेच्छराजने रँधा हुआ मांस, पत्रके पात्रमें ( दोनमें ) रखवा कर उसके तंबूमें भिजवाया । उसके देवपूजामें व्यस्त होनेके कारण, एक कुत्ता आ कर उस मांसको उठा ले गया। तब पहरेदारोंने कहा कि 'इसकी रक्षा क्यों नहीं करते !' इसपर राजाने कहा कि- मेरी जिस भोजनसामग्रीको कभी सात सौ सांढनियां भी ठीक तरह नहीं ढो सकती थी, उसी भोजनकी आज यह दुर्दशा है-इस बातको मैं अनाकुल हो कर कौतुकसे देख रहा हूं'। उन्होंने कहा कि- 'क्या तुममें अब भी कुछ उत्साह शक्ति बाकी है ? ' तो उसने कहा 'यदि मैं अपने स्थानपर जा पहुँच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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