Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 133
________________ ९८] प्रबन्धचिन्तामणि [चतुर्थ प्रकाश धारण कर और काले ही तंबूमें निवास करता हुआ [ पत्तन आया ] वहाँ पर चौलुक्य भूपाल ( कु मा र पाल ) ने उसे इस ढंगमें देखा तो पूछा कि 'यह किसका सैन्य पडा है ?' इस पर उसे कहा गया कि 'कौं ऋण से लौटे हुए पराजित सेनापति आम्ब ड के सैन्यका यह पडाव है।' उसकी ऐसी लज्जाशीलतासे चित्तमें चमत्कृत हो कर, प्रसन्नदृष्टि से उसे आदरके साथ बुलाया और फिर अन्यान्य बलवान् सामन्तोंके साथ मल्लि कार्जुन को जीतनेके लिये उसीको राजाने फिर भेजा। [वह इस बार कौङ्कण देशमें पहुँच कर ] उस नदीको उतर कर उस पर पुल बँधवाया और फिर उस परसे सारे सैन्यको पार करके बडी सावधानी के साथ युद्धकी व्यवस्था की । घमासान युद्ध शुरू होने पर उस सुभट आम्ब ड ने हाथीके कन्धे पर सवार मल्लिकार्जुन को ही लक्षित करके, बडी वीरवृत्तिके साथ उसके हाथीके दाँतरूपी मुशलकी सीढ़ीसे, उसके कुंभस्थल पर चढ़ बैठा । उद्दाम रणशौर्यसे मतवाला हो कर बोला कि- 'पहले प्रहार. करो, या इष्ट देवताका स्मरण करो ।' यह कह कर [ उसके सम्हलते ही ] अपनी धाराल तलवारके प्रहारसे म ल्लि का र्जुन को पृथ्वी पर गिरा दिया। उधर सामन्त लोग नगर लूटने में संलग्न थे, इधर इसने खेलहीमें, जैसे सिंहशावक हाथीको [ मार डालता है ] वैसे ही [ मल्लिकार्जुनको ] मार डाला । फिर उसके मस्तकको सोने [ के पतरे ]से लपेट कर, उस देशमें चौलुक्य चक्रवर्तीकी आज्ञाकी घोषणा करता हुआ, अण हि ल्ल पुर जा कर, बहत्तर सामन्तोंके साथ सभामें बैठे हुए अपने स्वामी कु मा र पाल नृपतिके चरणोंकी, उसके सिररूपी कमलसे पूजा की; तथा ये ४ चीजें भेंट की - १ शृंगारकोड़ी नामक साड़ी; २ माणिक नामक पिछोडा, ३ पापक्षय नामक हार, और ४ संयोगसिद्धि नामक सिप्रा । इनके सिवा ३२ कुंभ सुवर्ण, ६ मूडा मोती, चार दाँतवाला श्वेत हाथी, १२० पात्र ( वारांगना ) और १४॥ कोटी सुवर्ण दण्डके रूपमें उपस्थित किया । इससे अति प्रसन्न हो कर राजाने श्री आम्ब ड नामक महामण्डलेश्वरको श्रीमुखसे [ उस म ल्लि का र्जुन का धारण किया हुआ वह ] ' राज-पिता म ह ' बिरुद समर्पण किया । इस प्रकार यह मंत्री आम्बडका प्रबंध समाप्त हुआ। कुमारपालके साथ हेमचन्द्राचार्यके समागमका प्रसंग । १३८) एक बार, अण हि ल्ल पुर में भट्टारक श्री हे म चंद्र सूरि ने अपनी पाहिणि नामक माताको, कि जिसने दीक्षा ली हुई थी, परलोक प्राप्तिके समय कोटि नमस्कारके पुण्यका दान किया। मृत्युके बाद [ संघजन ] जब उसका संस्कार महोत्सव करने जा रहे थे, तब त्रिपुरुष धर्मस्थानके निकट [ उसका शबविमान पहुंचा तो ] वहाँके तपस्वियोंने स्वाभाविक मत्सरतावश, उस विमानका भंग करके आचार्यका खूब अपमान किया । उसकी उत्तरक्रिया करवा कर, उस अपमानके आघातसे कुपित हो कर उन्होंने [ उस समय ] मालवे स्थित कुमार पाल भूपतिके स्कंधावार ( सेनानिवेश ) को अलंकृत किया। १७९. मनुष्यको [ अभीष्ट कार्यसिद्धि प्राप्त करनेके लिये ] या तो स्वयं राजा बनना चाहिये या किसी राजाको हाथमें करना चाहिये । [ इन दो रास्तोंके सिवा ] कामके सिद्ध करनेका तीसरा रास्ता नहीं है। इस वचनके तत्त्वका विचार कर उन्होंने ऐसा किया। उनके इस तरह आनेका समाचार उ द य न मंत्री ने राजाको सुनाया तो कृतज्ञोंके शिरोमणि उस राजाने परम अनुरोधके साथ उन्हें अपने महल में बुलवाया । राज्य पानेके शकुन ज्ञानको स्मरण करते हुए राजाने अनुरोध करके कहा कि- 'आप सर्वदा देवताअर्चनके अवसर पर यहां आया करें । ' इस पर सूरिने कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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