Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 50
________________ प्रकरण १४-२०] वनराज-आदिका प्रबन्ध ४. वनराजादि प्रबन्ध । १५) उसी का न्य कुब्ज देशके [ अधिकारमें ] गुर्ज र धरित्री (गुजरात) भी एक प्रांतरूप है । उस गुजरात के वढी यार नामक देशके पञ्चा श र ग्राममें चा पोत्कट वंशमें जन्म लेनेवाले एक बालकको उसकी माता झोलीमें रखकर और उसे ' वण' नामक वृक्षमें लटकाकर लकड़ी चुन रही थी। कार्यवश वहां आये हुये श्री शील गुण सूरि नामक जैनाचार्यने यह देखकर कि, अपराह्नमें (दोपहरके बाद) भी उस वृक्षकी छाया नहीं झुक रही है, सोचा कि इस झोलीवाले बालकके पुण्यका ही यह प्रभाव है; और इस आशासे कि [भविष्यमें] यह जैन धर्मका प्रभावक पुरुष होगा, उसकी माताकी वृत्तिका उचित प्रबन्ध करवाकर उस बालकको उससे अपने अधीन ले लिया । वी र म ती ग णि नी नामक एक आर्या बालकका पालन करने लगी। गुरुने उसका नाम व न रा ज रखा। जब वह आठ वर्षका हुआ तो गुरुने देवपूजाके द्रव्योंको नष्ट करनेवाले चूहोंसे उस द्रव्यकी रक्षा करनेके काममें उसे नियुक्त किया। वह तो उन्हें बाणोंसे मारने लगा। गुरुके निषेध करने पर उसने कहा कि- ये चूहे तो चौथे उपाय यानि दण्डसे ही साध्य हैं । ' उसके जातक (जन्मकुण्डली ) में राजयोग देखकर और यह निर्णय करके कि यह महा नृपति होनेवाला है, गुरुने उसे फिर उसकी माताको सोंप दिया । वह माताके साथ किसी पल्ली ( गाँव ) में रहने लगा। वहां उसका मामा रहता था जो डकैती करता था, उसका वह आदरपात्र बन गया और उसके साथ गाँवों और नगरोंमें, अपने पौरुषका आतंक बतलाता हुआ, चारों और लूट-पाट करने लगा। १६) एकबार का क र नामके गाँवमें किसी व्यवहारीके घरमें सेंध मारा और धन चुराते समय उसका हाथ दहीके भाण्डमें पड़ गया । तब यह सोचकर कि मैंने इस घरमें खाया है, सब कुछ वहीं छोड़कर निकल गया । दूसरे दिन उस व्यवहारीकी बहन श्री देवी ने, रातको गुप्तरूपसे, उसे भाईके समान स्नेह बतलाकर अपने यहाँ बुलाया और पूछा- मेरे घरमें प्रवेश करके तुमने सब सार ग्रहण करके भी इस तरह क्यों छोड़ दिया ?' उसने कहा २०. कोप करनेका निमित्त मिलने पर भी उस मनुष्यके प्रति कैसे पापविचार किया जाय जिसके घरमें __ उत्पलदल ( कमलपत्र ) के समान सुकुमार हाथको गीला* बनाया हो । उस स्त्रीने भी उसकी बात सुनकर और उसके चरित्रसे चमत्कृत होकर भोजन और वस्त्र आदिसे उसका उपकार किया। व न रा ज ने उसके बदलेमें प्रतिज्ञा की कि-मेरे पट्टाभिषेकके समय तुम्ही बहन होकर टीका देना। १७) इसके बाद, एक दूसरे अवसरपर जब वह डकैती करने जा रहा था उस समय [ उसके साथी ] चोरोंने किसी एक जंगलमें जाम्बा नामक बनियेको जा घेरा । वे चोर जो तीन थे उनको देखकर बनियेने अपने पासके पांच बाणोंमेंसे दोको तोड़ डाले। चोरोंके पूछनेपर बोला कि-तुम तो तीन ही जन हो, इसलिये उससे अधिक दो बाण व्यर्थ हैं । ऐसा कहकर उसने उनके बताए हुए एक चलते लक्ष्यको अपने बाणसे बींध दिखाया । उसके इस लक्ष्यवेधसे सन्तुष्ट होकर, वे उसे अपने साथ ले गये। उसकी ऐसी युद्ध-विद्यासे चकित होकर श्री ब न रा ज ने यह आदेश देकर विदा किया कि मेरे पट्टाभिषेकके समय तुम महामन्त्री होगे । ___ * हाथ गीला बनानेका तात्पर्य भोजन करनेसे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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