Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 59
________________ २४] प्रबन्धचिन्तामणि [ प्रथम प्रकाश इत्यादि प्रकारके बहुतसे बोध-वाक्य उस भृत्यके सुनकर और उसकी उत्कट वीरता देखकर लक्ष का साहस खूब बढ़ा और उसने मूल राज के साथ बराबर तीन दिन तक द्वन्द्व-युद्ध किया। मूल राज ने उसकी अजेयता देखकर चौथे दिन सो मे श्व र का स्मरण किया। रुद्रकी कला जब उसके अन्दर अवतीर्ण हुई, तो [ उसके प्रभावसे ] उसने ला खा को मार डाला । बादमें ला खा की देह जब पृथ्वीपर गिरी हुई पड़ी थी तब हवाके संचारसे उसकी हिलती हुई दाढीको मूल रा ज ने पैरसे छुआ । इसपर लक्ष की माताने कुपित होकर यह शाप दिया कि तुम्हारा वंश लूति ( कुष्ठ ) रोगसे मरा करेगा। २९. मूल राज ने अपने प्रतापाग्निमें लक्ष को होम करके उसकी स्त्रियोंके आँसूओंकी धाराको उन्मुक्त किया । ३०. सहसा लंबे जालमें आये हुए लक्ष रूपी कच्छप ( कछुआ और कच्छका राजा) को मारकर जिसने संग्रामरूपी सागरमें अपनी धी-वरताका परिचय दिया +। ३१. हे मूल राज ! दानरूपी लता, बलि के समयमें पृथ्वीमें पैदा हुई, दधीचि के समय उसकी जड़ जमी, राम के होनेपर उसमें अंकुर उगे, कर्ण के समय उसमें डाल और टहनियां निकलीं, नागार्जुन के समय कलियाँ प्रकट हुई, वि क मा दित्य के समय फूली और तुम्हारे समयमें आमूल फलवती हुई। ३२. तुम्हारे शत्रुओंके [सूने ] महल, जो वर्षाकालमें, वादलोंके पानीसे स्नान करते हैं, उनके ऊपर जो तृण उग आये हैं उसके बहाने मानों वे कुश लिये हुए हैं, नालीके पानीसे मानों श्राद्धकी अञ्जलि दे रहे हैं, और दीवालके ढोंकोंके गिरनेके मिससे पिण्डदान करते हैं; इस प्रकार अपने स्वामीके प्रेतके लिये वे प्रतिदिन श्राद्ध कर रहे हैं। -इस प्रकार लाखा फूलोतकी उत्पत्ति और विपत्ति का यह प्रबंध है ॥११॥ २९) इस प्रकार उस राजाने पचपन वर्ष तक निष्कण्टक राज्य किया। एक बार सायंकालकी आरतीके अनन्तर राजाने एक दासको इनाममें पानका बीडा दिया। उसने हाथमें लेकर देखा तो उसमें कृमि दिखाई दिये। राजाके आग्रह पूर्वक पूछनेपर उसने यह बात कही। इससे राजाको वैराग्य आया और उसने संन्यास ग्रहण किया और दाहिने पैरके अंगूठेमें अग्नि प्रज्वलित कर, आठ दिनतक गज दान इत्यादि महादान देता रहा । ३३. एकमात्र विनय भावके वशी भूत होकर उसने पैरमें लगी हुई उध्दूमकेश अग्निको सहन किया। अन्य प्रतापियोंकी तो बात ही क्या है, उसने सूर्यके मण्डलको भी भेद दिया। ___इस प्रकारकी स्तुतियोंसे स्तुत होते हुए उसने स्वर्गारोहण किया। सं० ९९८ से लेकर ५५ वर्ष श्री मूल राज ने राज्य किया । ॥श्रीमूलराज प्रबंध समाप्त ॥ १ यह श्लोक श्लेषार्थवाला है-लक्ष होम के दो अर्थ होते हैं-लक्ष-लाखा राजाका होम, और लक्ष एक लाख वार होम । आकाशमें बादलोंकी दृष्टिका किसी कारणसे जब रुकाव हो जाता है तो उसके प्रतिकारके लिये एक लाख आहुतियों वाला होम करनेका वैदिक शास्त्रोंमें विधान है। इधर, लाखाकी रानियां, जो कभी रुदन नहीं करती थीं, उनके आंसूरूपी वृष्टिका प्रवाह चालू करनेके लिये, मूलराजने अपने प्रतापरूपी अनिमें लाखाको होम दिया-भस्म कर दिया। + इस श्लोकमें 'कच्छपलक्ष' और 'धीवरता' शब्द पर श्लेष है। मूलराजने कच्छप कच्छपति लक्षराजको मारकर अपनी धीवरता श्रेष्ठ बुद्धिमत्ताका परिचय दिया। दूसरा अर्थ कच्छपलक्ष यानि एक लाख कछए, और उस अर्थमें धीवरका अर्थ मच्छीमार ऐसा किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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