Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 51
________________ प्रबन्धचिन्तामणि [ प्रथम प्रकाश १८) बादमें कान्य कु ब्ज देशसे एक पञ्चकुल (कर वसूल करनेवाला) गुजरात देश का कर उगाहने आया। यह गुजरात देश उस कान्यकुब्ज देशके राजाने अपनी ' म ह ण का' नामक कन्याको दहेजमें दे दिया था। इस पञ्चकुलने उस वन राज नामक पुरुषको अपना सेल्लभृत् ( शस्त्राधिकारी) बनाया। छ महीने तक देशसे कर वसूल कर २४ लाख पारूथक द्रम्म ( चाँदीके सिक्के ? ) और ४ हजार अच्छी नस्लके तेजवान् घोड़े लेकर जब वह पञ्चकुल अपने देशको चला तो व न रा ज ने सौराष्ट्र नामक घाटपर उसे मार डाला और फिर उस राजाके भयसे साल भर तक किसी बनमें जाकर छिपा रहा। १९) इसके बाद, अपने राज्याभिषेकके लिये राजधानीका नगर बसानेकी इच्छासे एक अच्छी भूमि खोजने लगा। पीपल ला सरोवरके किनारे, अण हि ल्ल नामका भारू या इ साखड़ का लड़का जो सुखपूर्वक बैठा था, उसने पूछा कि-'तुम यहांपर क्या देख रहे हो?' उसके प्रधानोंके यह कहनेपर कि नगर वसानेके योग्य अच्छी भूमि देखी जा रही है । वह वोला कि-' यदि उस नगरको मेरे नामपर बसाओ तो मैं वैसी भूमि बताऊँ ।' यह कहकर वह जालि वृक्षके पास गया और वहां जितनी भूमिमें खरगोशके द्वारा कुत्ता त्रासित होता रहता था उतनी भूमिको उसने बताया । उसी भूमिमें वनराजने अण हि लपुर इस नामसे नया नगर वसाया। [यहांपर, एक P नामक प्रतिमें अणहिल्लपुरकी प्रशंसा बतलानेवाले निम्नलिखित पद्य लिखे हुए मिलते हैं-] [६] जो ( नगर ) हारका अनुकरण करनेवाले प्राकार ( खाई ) से प्रकाशित हो रहा है, वह ऐसा लग रहा है मानों सत्ययुग वृत्ताकार होकर कलिसे उसकी रक्षा कर रहा है। [७] जिस नगरमें रातके आरंभमें चन्द्रशाला ( ऊपरी तल ) में खेलती हुई स्त्रियोंके मुखकी शोभासे आकाश ऐसा जान पड़ता है कि उसमें सैकड़ों चन्द्रमा उदय हुए हैं। [८-९] जिस नगरकि विजयी गुणके सामने लंका को शंका हो गई, चम्पा कांपने लगी, विदिशा कृश हो गई, काशी की सम्पत्ति नष्ट हो गई, मिथिला का आदर शिथिल हो गया, त्रिपुरी की शोभा विपरीत हो गई, मथुरा की आकृति मन्थर (सुस्त, फीकी) पड़ गई और धारा भी निराधार हो गई। [१०] जिस नगरके स्त्रीजन और कौरवेश्वरके सैन्यमें हम कोई अन्तर नहीं देखते क्यों कि दोनों ही 'गांगेय-कर्ण' (स्त्री-पक्षमें सोना है कानमें जिनके; और सेना-पक्षमें भीष्म और कर्ण हैं जिनमें) हैं। [११] जिसके आगे प्रौढ़ शोभावाली अल का पुरी को पुलक नहीं होता (आनंदित नहीं होती), लं का अति शंकाकुला हो उठती है, उज यि नी की भी कभी जीत नहीं होती, चम्पा अति कांपती रहती है, कान्ति पुरी कान्तिविभूषिता नहीं होती, अयोध्या अतियोध्या हो जाती है, ऐसा यह अद्भुत पत्त न ( अणहिल्लपुर ) नगर है जिसमें लक्ष्मी सदा नाच करती रहती है। इस नगरकी जय हो। २०) श्री विक्रमादित्य के संवत् ८०२ आठ सौ दोमें-प्रत्यंतरमें, संवत् ८०२ के वैशाख सुदी दूज, सोमवारको-उस जालि वृक्षके नीचे बड़ा भारी राजप्रासाद बनाकर राज्याभिषेक लग्नके समय श्री व न राज ने का कर ग्रामकी रहनेवाली उस प्रतिज्ञात बहन श्री देवी को बुलाकर उसके हाथपे तिलक करवाया। उस समय उसकी आयु पचास वर्षकी थी। वह जांबा नामक वणिक महामंत्री बनाया गया । पञ्चा सर ग्रामसे श्री शी ल गुण सूरि को भक्तिके साथ ले आकर धवल गृहमें अपने सिंहासनपर बैठाया और कृतज्ञोंमें श्रेष्ठ होनेके कारण सप्ताङ्ग राज्य उन्हें समर्पण किया। उन निःस्पृह सूरिने उसका वार वार निषेध किया । किन्तु उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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