Book Title: Prabandh Chintamani
Author(s): Merutungacharya, Hajariprasad Tiwari
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 47
________________ प्रबन्धचिन्तामणि [प्रथम प्रकाश २. सातवाहन राजाका प्रबन्ध । १३) दान और विद्वत्ताके विषयमें श्री सात वा ह न की कथा परम्परागत यथाश्रुतिके अनुसार जानना चाहिये । ' उसके पूर्व जन्मकी कथा इस प्रकार है-प्रतिष्ठा न पुर में सात वाहन राजा जब राजपाटिका (बहिर्भमण) करने जा रहा था तो नगरके निकट नदीमें एक मछलीको हँसते देखा, जिसे लहरोंने पानीके किनारे फेंक दिया था। इस अस्वाभाविक बातको देखकर राजाको भय हुआ। उसने सभी पंडितोंसे इस सन्देहको पूछते हुए एक ज्ञा न सा गर नामक जैन मुनिसे भी पूछा। अपने अतिशय ज्ञानके बलसे उसने राजाके पूर्वजन्मको जानकर इस प्रकार उपदेश दिया कि-' पिछले जन्ममें तुम इसी नगरमें रहते थे । तुम्हारे कुल-वंशमें कोई नहीं था । और तुम्हारी जीवनवृत्ति एकमात्र लकड़ीका बोझ ढोना था । तुम नित्य ही भोजनके अवसर पर इसी नदीके निकटवर्ती शिलातलपर बैठकर पानीसे सत्तू सानकर खाया करते थे। किसी दिन, एक महीनेके उपवासकी पारणाके लिये नगरमें जाते हुए एक जैन मुनिको बुलाकर वह सत्तूका पिंड उनको दानकर दिया । उस पात्रदानके माहात्म्यसे तुम सा त वा ह न नामक राजा हुए और वह मुनि देवता हुआ । वही देवता अपने अधिष्ठान वश होकर, उस काष्ठभारवाही जीवको तुझे इस राजाके रूपमें पहचानकर, प्रमादके कारण हँस पड़ा।' इस कथागत वस्तुका संग्रह सूचक यह [ पुरातन ] काव्य है ९. मछलीके मुँहके हँसनेपर जो सा त वा ह न राजा भयभीत होगया था उससे मुनिने कहा कि जिसने सत्तूसे मुनिको पूर्व जन्ममें जो पारणा कराया था वही आप हैं और दैवात् मछलीने आपको पहचान लिया इसलिये वह हँस रही। वह सात वा ह न उस पूर्व जन्मके वृत्तान्तको जातिस्मृतिसे प्रत्यक्ष करके उस दिनसे दानधर्मकी आराधना करता हुआ सब महाकवियों और विद्वानोंका संग्रह करता रहा । उसने चार करोड़ सुवर्णसे चार गाथाओंको खरीदा और सात सौ गाथाओंवाला 'सातवाहन' नामक संग्रह गाथा कोश शास्त्र निर्माण कराया। इस प्रकार वह नाना सद्गुणोंका निधि बनकर चिरकाल तक राज्य करता रहा। वे चारों गाथायें ये हैं । जैसे [प्रबन्धचिन्तामणिकी मूल पाठकी जो आवृत्ति हमने तैयार की है उसमें यहां पर (देखो पृष्ठ ११) १० प्राकृत गाथायें दी हुई हैं। इन गाथाओंके क्रम आदिके विषयमें पुरानी प्रतियों में बहुत कुछ गडबड मालूम देती है । कोई प्रतिमें तो ये गाथायें सर्वथा नहीं दी गई हैं और 'गाथाचतुष्टयमेतद्' (अर्थात्-ये चार गाथायें इस प्रकार हैं) इस वाक्यके बदले 'तद्गाथाचतुष्टयं बहुश्रुतेभ्यो ज्ञेयं' (अर्थात्-ये चार गाथायें बहुश्रुत विद्वानों द्वारा जाननी चाहिए ) ऐसा वाक्य है; और कुछ प्रतियोंमें पहली ५ गाथायें लिखी हुई मिलती हैं, कुछमें दूसरी ५ गाथायें, कुछमें दसों गाथायें मिलती हैं । हमने मूलमें, संग्रहकी दृष्टिसे इन दस गाथाओंका पाठ दे दिया हैं। इनमें पहला गाथा-पंचक है वह शंगार विषयक वस्तुका वर्णनवाला है; दूसरा गाथा-पंचक अन्योक्तिद्वारा सत्पुरुषोंके परोपकार भावका वर्णन करता है । इन गाथाओंका अर्थ इस प्रकार है-] १० 'हार,' 'वेणीदंड, ' 'खट्वोद्गालि' और 'ताल' इन ४ वस्तुओंका वर्णन करनेवाली ४ गाथायें सालाहन राजाने दसकोडि [ सुवर्ण ] दे कर ग्रहण की ॥१॥ १ विक्रमकी तरह सा त वा ह न राजाकी भी बहुतसी कथायें परंपरासे चली आती हैं। विक्रम च रि त के समान सात वाह न च रित भी बना हुआ है। संस्कृतके कथासरित्सागर नामक प्रसिद्ध ग्रंथमें सा त वाहन की बहुतसी कथायें गूंथी हुई हैं। वे सब कथायें मेरुतुंगसूरिके समयमें बहुत प्रचलित थीं और लोक-प्रसिद्ध थीं इसलिये उन्होंने उन कथाओंको इस ग्रंथमें संकलित नहीं किया। विक्रम के बाद सा त वा ह न प्रसिद्ध ऐतिहासिक दानशील राजा हो गया और उसने भी विद्वानोंको खूब धन दान किया, इसलिये सिर्फ उसका नाम निर्देश करनेके निमित्त ही यह इतना-सा वृत्तांत उसके विषयमें मेरुतुंगसूरिने लिख दिया है। इसकी विशेष चर्चा अगले ऐतिहासिक विवेचनवाले भागमें की जायगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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