Book Title: Pindvishuddhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Buddhisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 11
________________ B R जिमेघराचार्य भी पड़े प्रकाण्ड पन्धित थे । नमोंने तो पम्प मंभवना विनयालम को गजाये, विमाठी व्याकरण, मेपलूतादि काव्य, खद, भट, पण्डी, वागन और भामह आदि के अलशर पन्थ, मादि छन्पशास के पन्थ, अनेकाग्वजयपताकादि जैन न्यायपन्य नशा सर्फफमली, किरणावली, न्याय. रित कि मन्मथे। एक और अन्य या प्रन्थकार जिसका तस्लेख पनकी विद्वत्ता के प्रसंग में SUREMEमनन ।' पर ठीक नहीं कहा जा सकता कि शहरनन्दन से अभिप्राय किससे है ? संभवतः यह कोई - मार्गक A LATER: || S SRCSE स्पवास स्पाग और उपसम्पदा ग्रहण MAध्यम मारने के पत्रात नमारे अपने गुरु जिनेश्वराचार्य के पास पापिस आने लगे तो आचार्य अपरेसा सिद्धान्त के अनुसार जो साधुओं का माचार प्रत है वह तुम सब समझ चुके, अत: उसके जमार निexattण'कर को वैसा ही प्रपत्ल करमा । " पर पता लिममणि के अन्तरात्मा की पुकार थी। के ममा प्रति महावीरससिवान के प्रति माकट प्रेम पहिले से ही सत्पन्न हो चुका था, अतः जिनामगणिने भी अभयारणों पर गिरकर कहा कि गुहवेष! आपकी को थाहार बसा ही निमित रूप से कहंगा।" इस पचन को पाक्षम होने मार्ग में ही करना प्रारंभ कर दिया। जैसे ही महको( मरोट) में पहुंचे, (जहा कि उन्होंने माते समय देवर की स्थापनाको प्रगति देवपुर में एक लिविवाक्य के रूप में निम्नलिखित लोक लिखा, जिसका

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