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उपोद्घाता
विधि नवाईयोपेत
कल्याणक प्ररूपणा।
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के विषय में क्या आप मी कुछ जानते हैं । जि०-हां कुछ थोड़ा सा । ब्रा०-अच्छा, तो आप कुछ कहें । जि०-भूदेव ! आप बतलाइये, मैं बस या बीस कितने लग्नों का प्रतिपादन करूं? - यह बात सुनकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो गया और उसके आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा, जब उन्होंने शीघ्र गणना करके उन लग्नों को बतला दिया। इसके बाद गणिजी आकाश की ओर संकेत करके बोले-" विप्रवर ! देखो वह आकाश में 1. दो हाथ का जो मेघ-खण्ड दिखाई पड़ता है, क्या आप बता सकते हैं कि उससे कितनी वर्षा होगी।" ब्राह्मण चारा
हतप्रभ हो गया । उसको निरुत्तर देख कर गणिजीने बतलाया-वह मेघखण्ड दो घड़ी के भीतर सम्पूर्ण गगनमण्डल में ज्यान होकर इतनी जल-वृष्टि करेगा कि दो ' भाजन ' भर आयेंगे । सचमुच ऐसा हुआ भी। इसके परिणाम स्वरूप वह माह्मण जब तक वहां रहा, तब तक उनके चरणों की पदना करके ही भोजन शहा यः ।
पकल्याणक-प्ररूपणा जिनवल्लभगणि जैन सिद्धान्त के कितने मर्मज्ञ थे और उसका प्रतिपादन वे कितने निर्भय होकर करते थे; इस बात का प्रमाण उनके द्वारा की गई छठे कल्याणक की प्ररूपणा में मिलता है। साधारणतया प्रत्येक तीर्थकर के निम्नलिखित पांच कल्याणक माने जाते है:. १-देवलोक से च्युत होकर माता के गर्भ में प्रवेश करना । २-जन्म महण करना। ३-संसार से विरक्त होकर प्रव्रज्या ( दीक्षा ) प्रहण करना । ४-तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त करना । ५-निर्वाण( मुक्ति) प्राप्त करना ।
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