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वैभव साधारण ही था, अतः उसने सर्व संग्रह की सीमा २० हजार की रखी । परन्तु जिनवल्लभगणि जो अपने ज्योतिष-ज्ञान से - उसके भावी ऐश्वर्य को देख सकते थे, अतः उन्होंने उस सीमा को और बढाने के लिए कहा, तब साधारण ने तीस सहन कहे, परन्तु जिनवल्लभगणि ने कहा कि 'यह पर्याप्त नहीं है और अधिक बढाओ।' साधारण को इस पर बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसके गृह की समस्त वस्तुओं का मूल्य ५०० भी नहीं होता था, फिर भी गणिजी के वारंवार आग्रह करने पर उसने एक लाल का सर्व परिमह निश्चित किया। स्वल्प कालान्तर में ही उसकी संपत्ति इतनी बढी. कि वह एक लक्षाधीश कहलाने लगा और वह सम्पूर्ण संघ में अग्रगण्य हो गया। इस चमत्कार से वे सारे सेठ भी उनकी ओर आकर्षित हो गये; जो साधुओं के पास धर्म और चारित्र की शिक्षा के लिये नहीं अपितु ऋद्धि-सिद्धि दोहने के लिये जाते हैं।
एक दूसरा चमत्कार उन्होंने और दिखलाया। उनके ज्योतिष-ज्ञान की कीर्ति सर्वत्र फैल गई थी। एक ज्योतिषी ब्राण उनके बश को सहन न कर सका और वह निनक्लभगणि को नीचा दिखाने की दृष्टि से उनके पास आया। आसन देने के पखात् निम्निलिखितः वार्तालाप प्रारंभ हुला:
जि-मद्र! आपका निवासस्थान कहां है ? और आपने किस शास्त्र का अभ्यास किया है। ब्रा०-मेरा निवासस्थान यहां । ही है और मैने अभ्यास-व्याकरण, काव्य, अलघर आदि सब ही शास्त्रों का किया है। जि०-ठीक है, परन्तु विशेष रूप से | किस विषय का किया है। ब्रा०-क्योतिष का । जि०-चन्द्र और आदित्य के लग्नों के विषय में आप जानते हैं ?। बाल-इसमें क्याविना. गणना किके ही एक-दो या तीन-उम्मों का प्रतिपादन कर सकता है। बि-बहुत मुन्दर शान है। त्रा-कान
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