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anure महावीर के विषय में यह विशेष माना जाता है कि पहिले उन्होंने देवानन्दा श्राणी के गर्भ में प्रवेश किया और वहाँ से उस गर्भ को इन्द्र- आदेश से हरिणगमेषी देव द्वारा महारानी त्रिशला के गर्भ में लाया गया। सूत्रमन्थों में जैसा कि मागे बताया गया है, इस गर्भापहरण की मां उपर्युक्त पांच के समान ही एक कल्याणक माना गया है। जिनवल्लभ गणिने कल्पसूत्रादि के पाठ पढे सम्यग् विमर्श कर इसको छठा कल्याणक प्रसिद्ध किया । अन्य पांच कल्याणकों के उपलक्ष में तो उस समय चैत्यवासी रोग भी उत्सव मनाकर भगवान की पूजा किया करते थे, परन्तु गर्भापहरणे नाम का कल्याणक तत्कालीन जनता में विस्मृत
इसलिये जब आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के आने पर जिनवल्लभगणिने श्रावकों से कहा कि आज हमें श्रमण भगवान कल्याणक मनाना है तो वे बड़े आश्चर्य में पड़ गये। परन्तु जब उनको आगमों के प्रमाण देकर समझाया Best art के लिये सहर्ष तैयार हुए। वहां के सभी देवालय चैत्यवासियों के थे; त
मनाया जाये । प्रथम तो जनगण के नेतृत्व में सभी आवक एक चैत्यालय पर गये, परन्तु
एक आर्या धरना देकर द्वार पर बैठ गई । उसका कहना था कि ऐसा काम कभी भी नहीं हवा में होने दूंगी। बहुत समझाने बुझाने पर भी जब उसने अपना हक नहीं छोड़ा, तो मारिस अपने स्थान पर लौट आये । अन्त में एक भावक के घर पर ही भगवान की
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