Book Title: Pariksha Mukham Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha View full book textPage 6
________________ हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । बंगला-घटपट प्रभृति पदार्थक एवं निजेके प्रकाश कराते दीपक येमन स्वपरप्रकाशक, सेरूप ज्ञानओ घटपट प्रभृति पदार्थेर एवं निजेर ज्ञापक बलिया ताहाकेआ स्वपर बोधक स्वीकार करते हइबे । कारण एमन के लौकिक (अप्राप्त. ज्ञानप्रकर्ष ) एवं परीक्षक ( प्राप्तज्ञानप्रकर्ष ) आछन यिनि ज्ञानद्वारा प्रकाशित पदार्थके प्रत्यक्ष ज्ञानेर विषय स्वीकार करेन किंतु सेइ ज्ञानके प्रत्यक्ष ज्ञानेर विषय स्वीकार ना करेन ॥११-१२॥ तत्प्रामाण्यं स्वतः परतश्च ॥१३॥ हिंदी-उपर्युक्त प्रमाणकी प्रमाणता (सच्चावट) अभ्यास दशामें अपने गामके निकट देखे भाले नदी कूपादि पदार्थोमें ) अपने आप सिद्ध हो जाती है और अनभ्यास दशामें (अपरिचितपदार्थोके निर्णयमें ) किसी अन्य पुरुषादिसे सिद्ध होती है ॥१३॥ वंगला-पूर्वोक्त प्रमाणेर प्रामाण्य अभ्यासदशाय स्वतः ( काहारओ साहाय्यभिन्न ) एवं अनभ्यासदशाय परतः ( अपरेर साहाय्ये ) हइया थाके ॥ १३ ॥ इति परीक्षामुखसूत्रार्थे प्रथमोद्देशः॥ १॥ अथ द्वितीयोद्देशः। तवेधा ॥१॥ प्रत्यक्षतरभेदात् ॥२॥ विशदं प्रत्यक्षं ॥३॥ हिंदी-वह प्रमाण प्रत्यक्ष और परोक्षके भेदसे दो प्रकारका है । विशद ( स्पष्ट ) ज्ञानको प्रत्यक्ष कहते हैं ॥१-२-३॥ बंगला-प्रमाण प्रत्यक्ष ओ परोक्षभेदे दुइ प्रकार । विशद (स्पष्ट) ज्ञानके प्रत्यक्ष बला हय ॥१-२-३॥ ..Page Navigation
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