Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भूमिका (प्रथम संस्करण) लीजिये यह है पांडुलिपि विज्ञान की पुस्तक । श्रापने "पांडुलिपि " तो देखी होगी, उसका भी विज्ञान हो सकता है या होता है, यह बात भी जानने योग्य है । इस पुस्तक में कुछ यही बताने का प्रयत्न किया गया है कि पांडुलिपि विज्ञान क्या है और उसमें किन बातों और विषयों पर विचार किया जाता है ? वस्तुतः पांडुलिपि के जितने भी अवयव हैं, प्रायः सभी का अलग-अलग एक विज्ञान है और उनमें से कइयों पर अलग-अलग विद्वानों द्वारा लिखा भी गया है, किन्तु पांडुलिपि विज्ञान उन सबसे जुड़ा होकर भी अपने श्राप में एक पूर्ण विज्ञान है, मैंने इसी दृष्टि को आधार बनाकर यह पुस्तक लिखी है । कहीं-कहीं पांडुलिपि के अवयवों में आलंकारिकता और चित्र-सज्जा का उल्लेख पांडुलिपि निर्माण के उपयोगी कला-तत्त्वों के रूप में भी हुआ है । । पर, यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि पांडुलिपि मूलतः कलात्मक भावना से व्याप्त रहती है । पहले तो उपयोगी कलात्मकता का स्पर्श उसमें सुन्दर हो, जिस पर साफ-साफ लिखा जा सके । लेखनी अच्छी हो, वाली हो, और लिखावट ऐसी हो कि आसानी से पढ़ी जा सके लिखावट को देखकर उसे पढ़ने का मन करने लगे। कई रंगों पहले तो अभिप्राय या प्रयोजन भेद के नाम, अंतरंग शीर्षक, आदि मूल पाठ से हैं । किन्तु यह उपयोगी सहज सुन्दरता तो पुस्तक या पांडुलिपि की सामान्यतः उसकी ग्राहकता बढ़ाने के लिए ही होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहता है । लिप्यासन स्याही भी मन को भाने आधार पर किया जाता है; भिन्न बताने के लिए लाल यह भी दृष्टि रहती है कि स्याहियों का उपयोग For Private and Personal Use Only जैसे— पुष्पिका, छंद स्याही से लिखे जाते पर, पांडुलिपि पूरी उत्कृष्ट कला की कृति हो सकती है, और यह भी हो सकता है कि उसमें विविध अवयवों में ही कलात्मकता हो । सम्पूर्ण कृति की कलात्मकता में उत्कृष्टता के लिए लिप्यासन भी उत्कृष्ट होना चाहिए, यथा बहुत सुन्दर बना हुप्रा सांचीपात हो सकता है । हाथीदांत हो सकता है । 2 उस पर कितने ही रंगों से बना हुआ आकर्षक हाशिया हो सकता है, उस पर बढ़िया पक्की स्याही या स्याहियों में, कई पार्टी में मोहक लिखावट की गयी हो, प्रत्येक अक्षर सुडौल हो । पुष्पिकाएँ भिन्न रंग की स्याही में लिखी गयी हों । मांगलिक चिह्न या शब्द भी मोहक हों । ऐसी कृति सर्वांग सुन्दर होती है, ऐसी पुस्तक तैयार करने में बहुत समय और परिश्रम करना पड़ता है । कृतिकार या लिपिकार की कला का प्रथम उत्कृष्ट प्रयोग हमें लिखावट में मिलता है । 1. अलवर के संग्रहालय में 'हक्त बन्दे काशी' श्री ए० एम० उस्मानी साहब ने बताया है कि "यह किताब भी नादेरात का अजीब नमूना है। हाथीदांत में वरक तैयार करके उन पर नेहायत रोशन काली सियाही से उम्दा नसतालिक में लिखा गया है । हुरूफ की नोक पलक बहुत उमदा है । - इस पर सोने का काम सोने में सुहागा है । बहुत बारीक और काबिले दीद गुलकारी है ।" ('द रिसर्चर' पृ० 37 ) ।

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