Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव विधिनायक की मूर्ति पर ही सम्पन्न होगी, किन्तु सामान्य विधि तो सभी मूर्तियों पर होती है। पूजन भी प्रतिदिन सभी तीर्थंकरों की होती है। ___ मूलतः तो प्रत्येक पंचकल्याणक श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव ही होता है और उसमें सभी जिनेन्द्रों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की जाती हैं, पर प्रत्येक पंचकल्याणक में किसी एक तीर्थंकर को विधिनायक के रूप में स्वीकार किया जाता है और उनके जीवन के आधार पर पंचकल्याणक का कार्यक्रम सुनिश्चित होता है। ये पंचकल्याणक ऐसी पाँच घटनाएँ हैं, जो भरत क्षेत्र के चौबीसों तीर्थंकरों के जीवन में समान रूप से ही घटित हुई थीं। अतः किसी भी तीर्थंकर को विधिनायक क्यों न बनाया जाय, कुछ छोटी-मोटी बातों को छोड़कर कोई विशेष अन्तर नहीं आता। माता-पिता के नाम, जन्मस्थान, वैराग्य का निमित्त आदि बातों में ही अन्तर आता है, शेष तो सब समान ही हैं। वे ही सौधर्मादि इन्द्र, वही सुमेरुपर्वत, वही पांडुकशिला, वैसा ही अभिषेक आदि सब एक-सा ही होता है। __ यदि कोई विशेष कारण न हो तो अधिकांश पंचकल्याणकों में ऋषभदेव को ही विधिनायक बनाया जाता है; क्योंकि उपलब्ध सभी प्रतिष्ठापाठों की रचना उन्हीं को विधिनायक मानकर हुई है। जब अन्य तीर्थंकरों को विधिनायक बनाया जाता है तो प्रतिष्ठाचार्य आवश्यक संशोधन करके प्रतिष्ठा सम्पन्न कराते हैं। अयोध्यानगर के रूप में बने इस विशाल पंडाल में आज हम सबने पंचकल्याणक का झंडा गाड़ दिया है। अत: हम सबको आज से अपना झंडा भी यहीं गाड़ देना चाहिए और हर कार्यक्रम में आद्योपान्त उपस्थित रहकर इस महायज्ञ का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। सफलता विवेक के धनी कर्मठ बुद्धिमानों के चरण चूमती है। -आप कुछ भी कहो, पृष्ठ २९

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