Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 56
________________ 48 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव नेमिनाथ की विरक्ति का कारण भी जगत का स्वार्थ ही था। ये स्वार्थी जगत अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरों के सुख-दुःख का जरा भी ख्याल नहीं रखता। ज्ञानीजनों को जगत की यह स्वार्थ-वृत्ति बहुत खटकती है। ___ भाई, वैराग्य तो अन्तर की योग्यता पकने पर होता है; काललब्धि आने पर होता है। अन्तर की योग्यता पक जावे और काललब्धि आ जावे तो चाहे जिस निमित्त से वैराग्य हो सकता है। अपने सफेद बाल देखकर भी हो सकता है। न होना हो तो सम्पूर्ण बाल झड़ जावें, तब भी नहीं होता है। • नीलांजना का नृत्य तो अभी आपने देखा है, उसे मरते भी देखा है, उसके स्थान पर दूसरी को आते भी देखा है; पर आपको वैराग्य तो नहीं हुआ। आप तो यह देख-देखकर हँस रहे थे; मनोरंजन कर रहे थे। मैंने बारीकी से देखा है, किसी के चेहरे पर वैराग्य का नामोनिशान भी न था। ऐसा क्यों हैं? इन सबका एक ही उत्तर है कि अभी हमारी काललब्धि नहीं आई है, अभी हमारी पर्यायगत योग्यता नहीं पकी है। निमित्तों से क्या होता है, जबतक अन्तर की योग्यता का परिपाक न हो। पशुओं के बन्धन भी हमने कम नहीं देखे, उनका क्रन्दन भी खूब सुना है; पर हमारा दिल कहाँ पिघलता है? अन्तर की तैयारी के बिना कुछ नहीं होता। ऋषभदेव तो ज्ञानी थे, धर्मात्मा थे; पर जबतक दीक्षा के लिए उनका अन्तर तैयार नहीं हुआ, तबतक कुछ नहीं हुआ; जबतक काललब्धि नहीं आई, पर्यायगत योग्यता का परिपाक नहीं हुआ, उन्हें वैराग्य नहीं हुआ; उन्होंने दीक्षा नहीं ली। अन्दर की तैयारी बिना चार हजार राजाओं ने दीक्षा ले ली; पर क्या परिणाम निकला उसका? अतः बात तो यही ठीक है कि जब अन्दर की तैयारी हो, काललब्धि आ जावे, पर्यायगत योग्यता का परिपाक हो जावे तो निमित्त भी मिल ही जाता है और काम हो जाता है।

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