Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 77
________________ सातवाँ दिन 69 इन बातों पर गंभीरता से विचार करने पर इस बात की ओर विशेष ध्यान जाता है कि इन्द्र जैसे समझदार व्यवस्थापक ने कुछ सोच-समझकर ही यह व्यवस्था की होगी। मूलतः बात यह है कि जो जितना बड़ा वक्ता होता है, उसकी सभा में उतने ही अधिक श्रोता पहुँचते हैं। यदि वक्ता पुण्यशाली भी हुआ तो जनता उमड़ पड़ती है। जहाँ तीर्थंकर जैसा पुण्यशाली प्रवक्ता हो, वहाँ तो कहना ही क्या है ? __ ऐसी स्थिति में भीड़ को नियंत्रित करना एक समस्या तो होती ही है। सामान्य व्यवस्थापक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रवेशपत्रों की व्यवस्था करते हैं, बिना प्रवेशपत्र के लोगों को रोकने के लिए शक्ति का प्रयोग करते हैं। कुछ बनियाबुद्धि व्यवस्थापक टिकट लगा देते हैं, जिससे भीड़ भी कम हो जाती है और आर्थिक लाभ भी हो जाता है। पर इन्द्र जैसे निर्लोभी, बुद्धिमान, विवेकी और समर्थ व्यवस्थापक के लिए यह सब संभव न था। वह तो यह चाहता था कि चाहे निर्धन हो या धनिक, चाहे मनुष्य हो या पशु, पर जो तीव्र रुचि वाले हैं, निकटभव्य हैं, विषय-कषाय से विरक्त हैं और अप्रमादी हैं। ऐसे लोग ही धर्मसभाओं में पहुँचना चाहिए, जिससे भगवान की वाणी का पूरा-पूरा सदुपयोग हो सके। जब इन्द्र ने इतनी बड़ी धर्मसभा की व्यवस्था की तो वहाँ बैठने के स्थान की कोई समस्या नहीं थी; क्योंकि वे चाहते तो नाट्यशालाओं और बागबगीचों वाले स्थान को भी सभाभवन के रूप में व्यवस्थित कर सकते थे। पर मूल बात यह थी कि विषय-कषाय की रुचि वाले, दीर्घसंसारी, प्रमादी लोग वहाँ पहुँच कर स्वयं तो भगवान की वाणी मन लगाकर सुनते ही नहीं, दूसरों को भी न सुनने देते। अतः उसने विषय-कषाय की रुचिवाले और प्रमादी लोगों को रोकने के लिए ही यह व्यवस्था की होगी।

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