Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 95
________________ आठवाँ दिन 87 आप क्या करना चाहते हैं? न सही बढ़ाचढ़ाकर पर, आप सुनाना ही क्यों - चाहते हैं, उससे आपको क्या लाभ नजर आता है? आपको जो आध्यात्मिक लाभ मिला है, जो कुछ अच्छा दिखाई दिया है; यदि उसे रस ले-लेकर सुनायेंगे तो भविष्य में इसप्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेने की प्रेरणा उन्हें भी मिलेगी और आपका उपयोग भी निर्मल रहेगा। इस जगत में बुराइयों की तो कमी नहीं है, सर्वत्र कुछ न कुछ मिल ही जाती है; पर बुराइयों को न देखकर अच्छाइयों को देखने की आदत डालनी चाहिए। अच्छाइयों की चर्चा करने का अभ्यास करना चाहिए। अच्छाइयों की चर्चा करने से अच्छाइयाँ फैलती हैं और बुराइयों की चर्चा करने से बुराइयाँ फैलती हैं। अत: यदि हम चाहते हैं कि जगत में अच्छाइयाँ फैलें तो हमें अच्छाइयों को देखने-सुनने और सुनाने की आदत डालनी चाहिए। चर्चा तो वही अपेक्षित होती है, जिससे कुछ अच्छा समझने को मिले, सीखने को मिले। __ आप यहाँ से जब वापिस जायेंगे और घर पहुँचेंगे, तब आपका जो व्यवहार होगा, जीवन होगा; चित्त की जैसी वृत्ति होगी, प्रवृत्ति होगी; उसी को देखकर घरवाले, परिवारवाले, मुहल्लेवाले यह निर्णय करेंगे कि पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में जाने के क्या लाभ है और क्या हानि है ? ___ अतः अपने व्यवहार को सुधारने का उत्तरदायित्व आज हम सबके कंधों पर है; क्योंकि न केवल हमारा भविष्य ही इस पर निर्भर करेगा, अपितु हमारी भावी पीढ़ियों का भविष्य भी इससे जुड़ा हुआ है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी भावी पीढ़ियों में भी धार्मिक संस्कार रहें तो हमें अपने जीवन को संयमित करना होगा, सुव्यवस्थित करना होगा; क्योंकि भावी पीढ़ी जितना भने पूर्वजों के आचार-व्यवहार को देखकर सीखती है, कहने-सुनने मात्र से उसका शतांश भी उनके जीवन में नहीं आता। _ मैंने आरंभ के दिनों में ही आपसे कहा था कि आप जब यहाँ से वापिस जायें तो कुछ शान्त होकर जायें, सदाचारी होकर जायें, स्वाध्याय का संकल्प लेकर जायें, जगत से निवृत्ति और आत्मा में प्रवृत्ति का संकल्प लेकर जावें।

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