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आठवाँ दिन
85 क्या आप कुछ ऐसा भी ले जा रहे हैं, जो भगवान के पंचकल्याणकों में से ले जाना चाहिए; जिससे आपके परिवार वाले भी पंचकल्याणक का लाभ ले सकें, रिश्तेदार, मित्रगण और मिलनेवाले भी पंचकल्याणक का लाभ ले सकें?
क्या आप कुछ ऐसा समझकर भी जा रहे हैं, सीखकर भी जा रहे हैं; जो अपने परिवारवालों को, मित्रों को, मिलनेवालों को व रिश्तेदारों को समझा सकें, सिखा सकें और उन्हें भी आत्मकल्याण करने के लिए प्रेरित कर सकें? ___ अन्तर से उठे इन प्रश्नों का उत्तर यदि 'हाँ' में आवे तो हम आपको धन्यवाद देना चाहेंगे और यदि 'ना' में आवे तो हम एक सलाह देना चाहेंगे कि अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, अभी आप निकल थोड़े ही गये हैं, अभी तो आप यहीं है और प्रवचन सुन रहे हैं; अतः आप अब भी चेत सकते हैं और कुछ ऐसा ले जाने की सोच सकते हैं कि जो आत्मकल्याण का सीधा निमित्त हो। ____यदि आप इस संदर्भ में मेरा सहयोग चाहें, मेरी सलाह चाहें तो मैं आपसे कहूँगा कि जो बात भगवान की दिव्यध्वनि में आई है, उसका प्रतिपादन करने वाले शास्त्रों को ले जाइये, जिनवाणी माता को ले जाइये; यदि आपको विद्वानों के प्रवचन अच्छे लगे हों तो, उनके कैसेट ले जाइये और अपने रिश्तेदारों को दीजिए, मित्रों को दीजिए, मिलनेवालों की दीजिए और परिवारवालों को भी दीजिए; जिससे जिनवाणी के स्वाध्याय और प्रवचनों के सुनने का लाभ वे भी उठा सकें, अपना जीवन सुधारने के लिए वे कुछ प्रेरणा प्राप्त कर सकें, वे भी अपना भावी जीवन सुधारने की कुछ योजना बना सकें। ___ आप अपने मित्रों, रिश्तेदारों, मिलनेवालों और घरवालों को देने के लिए कुछ न कुछ ले तो अवश्य जायेंगे; पर जरा सोचिए कि यदि आप ऐसी कोई वस्तु ले गये, जो उनके दैनिक भोगोपभोग के काम आवे तो उनके उस भोगोपभोग के पाप के कुछ हिस्सेदार आप भी न बनेंगे क्या?