Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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आठवाँ दिन
83 विधि के प्रदर्शन का ही यह महोत्सव है और इस मोक्ष प्राप्ति के कारण ही गर्भ, जन्म, तप आदि कल्याणस्वरूप माने गये हैं। इस मोक्ष की प्राप्ति के वाँच्छक होने के कारण ही हम सब मुमुक्षु कहलाते हैं । यह मोक्ष ही अन्तिम साध्य है, सम्पूर्ण धर्माराधना इस मुक्ति की प्राप्ति हेतु ही होती है। ___ मुक्ति प्राप्त हो गई, इसकारण ऋषभदेव की सर्व धर्माराधना आज सफल हो गई है। उन्होंने पुरुषार्थ का अन्तिम फल प्राप्त कर लिया है। चार पुरुषार्थों में अन्तिम पुरुषार्थ मोक्ष ही है, उसे प्राप्त कर लेने से उनकी सम्पूर्ण साधना सफल हो गई है। इसी का यह महोत्सव है। ___ उनकी साधना तो सफल हो गई, पर अभी हमारी और आपकी साधना बहुत शेष है। कुछ लोगों ने तो अभी वह आरंभ ही नहीं की है। कम से कम इस महोत्सव में आने के फलस्वरूप हमें वह साधना आरंभ करने का संकल्प तो करना ही चाहिए। इस बहुमूल्य मनुष्यभव के जो क्षण शेष बचे हैं, उनके सदुपयोग के लिए कुछ समयबद्ध कार्यक्रम तो सुनिश्चित करना ही चाहिए। यदि ऐसे अवसर पर ही हम कुछ संकल्प न कर सके तो फिर कौनसा अवसर
आएगा, जो हमें जागृत कर सकेगा, प्रेरित कर सकेगा? ___ अब हमारा यह महोत्सव समापन की ओर जा रहा है। जो जिनप्रतिमाएँ यहाँ प्रतिष्ठित होने आईं थी, वे सब प्रतिष्ठित हो चुकी हैं, भगवान बन चुकी हैं। अब वे प्रतिदिन साक्षात् अरहंतदेव के समान ही पूजी जावेंगी। हजारों वर्ष तक भव्य जीव उनके दर्शन-पूजन से सातिशय पुण्य उपार्जित करेंगे।
हम सब भी लौटकर अपने-अपने घर जाने की तैयारी में है। अब यह स्वयं के अन्तर निरीक्षण का समय है। हम स्वयं अपने अन्तर को परखें और इस बात को सुनिश्चित करें कि हम में भी कुछ अन्तर आया है या नहीं,हमारी परिणति भी कुछ निर्मल हुई है या नहीं ?
हम दूसरों को धोखा दे सकते हैं, पर स्वयं को नहीं। हमारा हृदय हमें स्पष्ट बतायेगा कि यहाँ आकर हमने कुछ पाया है या नहीं या फिर जैसे आये थे, वैसे ही वापिस जा रहे हैं ?

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