Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 92
________________ 84 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एक बार इस ओर भी देख लें कि कहीं ऐसा तो नहीं हो गया है कि हम यहाँ से भी कुछ नया राग-द्वेष लेकर जा रहे हों; क्योंकि 'परदेश कलेश नरेशन को' की सूक्ति के अनुसार आपको कुछ न कुछ असुविधा तो अवश्य हुई होगी। घर जैसी सुविधा इन मेलों-ठेलों में कहाँ संभव है? हो सकता है आपकी किसी से गर्मागर्मी भी हो गई हो, कहा-सुनी भी हो गई हो; हाथापाई होने की कल्पना करना तो मुझे उचित प्रतीत नहीं होता, पर आपकी गलती से नहीं, किसी और की गलती से ऐसा कुछ हो गया हो तो क्या आप यहाँ से वैर-विरोध लेकर अपने घर जायेंगे? सोचिए जरा, अच्छी तरह सोचिए; क्या आप इसीलिए यहाँ आये थे कि यहाँ से दो-चार नये शत्रु बनाकर ले जावेंगे? शत्रुओं की कमी तो आपके आसपास भी न होगी, यहाँ से तो कुछ पवित्र संकल्प लेकर जाइये, प्रतिदिन स्वाध्याय करने का संकल्प लेकर जाइये, प्रतिदिन जिनेन्द्रदेव के दर्शन-पूजन करने का संकल्प लेकर जाइये; संयमी नहीं तो कुछ सदाचारी बन कर जाइयेयह वह निधि होगी जो भव-भव में आपके काम आयेगी, भव का अभाव करने के काम आयेगी। यदि भव-भव में न भटकना हो तो यही एक मार्ग है। ___ यदि आप थोड़ा भी अन्तर में झाकेंगे तो यह भी समझ में आ जायेगा कि आपने यहाँ आकर अकेले पंचकल्याणक के दृश्य ही नहीं देखे हैं, अकेले प्रवचन ही नहीं सुने हैं; कार्यक्रमों और प्रवचनों से बीच-बीच में गोल होकर बाजारों के चक्कर भी लगाये हैं और अनेक प्रकार की खरीददारी भी की है; पर जरा ध्यान से देख लीजिएगा कि वह सब भोगसामग्री ही है न? वह हमारे विषय-कषाय के पोषण में ही काम आयेगी न? क्या आप इसी को खरीदने यहाँ आये थे? क्या आप अपने घर जाकर घरवालों को, मिलनेवालों को, मित्रों को, रिश्तेदारों को यही सब प्रसादी के रूप में देंगे और यही सुनायेंगे सबको कि व्यवस्था में क्या-क्या गड़बड़ी थी और आपका किस-किस से लड़ाई-झगड़ा हुआ, आपने कैसी-कैसी खरीखोटी सुनाई या फिर क्या-क्या देखा है नगर में, बाजार में या यहाँ-वहाँ ?

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