________________
सातवाँ दिन
(१) ऋषभदेव की धर्मसभा समोसरण की रचना (२) भगवान ऋषभदेव की दिव्यध्वनि
(३) दिव्यध्वनि में समागत वस्तु का स्वरूप
तीर्थंकर की धर्मसभा को समोसरण कहते हैं। उसकी रचना सौधर्म इन्द्र के माध्यम से होती है। वह धर्मसभा हमारी धर्मसभा जैसी नहीं होती, अपितु गोलाकार होती है। बीच में भगवान विराजमान होते हैं और चारों ओर श्रोताजन बैठते हैं । उसमें चारों ओर मिलाकर १२ सभायें होती हैं, जिनमें मुनिराज, आर्यिका श्रावक एवं श्राविकाओं के साथ- साथ देव-देवांगनाएँ तथा पशु-पक्षी भी श्रोताओं के रूप में बैठते हैं ।
,
यद्यपि भगवान बीच में विराजमान होते हैं, तथापि चारों ओर बैठे लोगों में से किसी की ओर उनकी पीठ नहीं होती; सभी को ऐसा लगता है कि मानों भगवान का मुख उनकी ही ओर है। उनका मुख चारों ओर होने से उन्हें चतुर्मुख भी कहा जाता है। उनके चार मुख नहीं होते, पर कुछ ऐसा अतिशय होता है कि उनका मुख चारों ओर बैठे लोगों को दिखाई देता है । इसप्रकार के अनेक अतिशय उनके समोसरण में देखने में आते हैं।
अवगत
•
67
·
魚