Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 78
________________ 70 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव __ प्रमादी लोग तो बीसहजार सीढ़ियों का नाम सुनकर ही हिम्मत हार देते होंगे, पर कुछ हट्टे-कट्टे लोग ऐसे भी होते हैं कि.जो कुतूहल वश 'बीसहजार सीढ़ियाँ भी सहज ही पार कर लेते हैं। विषय-कषाय की रुचि वाले ऐसे हट्टे-कट्टे लोगों को रोकने के लिए ही मानों बाग-बगीचों की रचना की जाती है। ऐसा होता भी है कि हजारों लोग प्रतिदिन भगवान की वाणी सुनने के संकल्प के साथ घर से निकलते हैं और मार्ग में आने वाले बाग-बगीचों में ही रम जाते हैं, नृत्य देखने में लगे रहते हैं और धर्मसभा तक पहुँच भी नहीं पाते। धर्मसभा तक पहुँचने वाले तो वे ही होते हैं कि न जिन्हें बाग-बगीचों में रस है और न नाच-गाने में। वे तो एकमात्र भगवान की वीतराग वाणी के रसिया होते हैं, जो यहाँ-वहाँ निगाह डाले बिना सीधे धर्मसभा की ओर उन्मुख रहते हैं और यथासमय पहुँच कर उनकी वाणी का पूरा-पूरा लाभ लेते हैं। ___ ऐसे सुयोग्य-सुपात्र श्रोताओं के सद्भाव का ही यह सुपरिणाम निकलता है कि जब भगवान की दिव्यध्वनि खिरती है तो वह निष्फल नहीं जाती, उसके प्रभाव से सैकड़ों लोग मुनिदीक्षा ग्रहण करते हैं; हजारों अणुव्रत लेते हैं और लाखों सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करते हैं । इसप्रकार के अनेक कथन शास्त्रों में आते हैं कि अमुक तीर्थंकर की दिव्यध्वनि सुनकर इतने लोगों ने मुनिदीक्षा ली, इतने लोगों ने अणुव्रत धारण किए और इतने लोगों ने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की। अत: यह सहजसिद्ध ही है कि समोसरण की रचना का जो स्वरूप है, वह सुसंगत ही है। ___ उक्त संदर्भ में एक बात और भी विचारणीय है। जब कोई अध्यापक किसी कक्षा में पढ़ाने के लिए जाता है, तो उसके सामने जो छात्र होते हैं, उनका एक स्तर होता है। जैसे कोई अध्यापक दशवीं कक्षा को पढ़ाता है तो

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