Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 70
________________ 62 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव अपना वजन भी नहीं डालते, भिनभिनाते रहते हैं, उड़ते रहते हैं और अत्यन्त बारीक अपने डंक से इसप्रकार रस चूसते हैं कि पुष्प का आकार भी नहीं बिगड़ता, वह एकदम जैसा का तैसा बना रहता है। उसीप्रकार मुनिराज भी, जिसके यहाँ आहार लेते हैं, उसे किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुँचे, ऐसा नहीं होने देते। अत: उनके उद्देश्य से बनाये गये आहार को ग्रहण नहीं करते। गृहस्थ ने जो आहार स्वयं के लिए बनाया, उसमें से ही वह मुनिराज के लिए देवे, वही ग्रहण करते हैं । मुनिराजों के उद्देश्य से बनाये गये आहार में जो आरंभी हिंसा होती है, उसका भागी मुनिराज को बनना होगा; इसकारण मुनिराज नहीं चाहते कि कोई उनके उद्देश्य से आहार बनावे। यही कारण है कि वे उद्दिष्ट आहार के त्यागी होते हैं। दीक्षाकल्याणक के दिन दिगम्बर मुनिराजों की समस्त चर्या पर ऊहापोह होना चाहिए, मुनिराजों के अन्तर्बाह्य सच्चे स्वरूप का प्रतिपादन निष्पक्षभाव से शास्त्रानुसार होना चाहिए; जिससे जनता मुनिधर्म के सच्चे स्वरूप को समझ सके और मुनिराजों के प्रति उसके हृदय में भक्तिभाव भी जागृत हो। ___ मुनिधर्म इतना महान है, इतना सहज है, इतना दुर्धर है कि उसका सही स्वरूप जनता के सामने आवे तो जनता अभिभूत हुए बिना न रहे। मुनिधर्म का स्वरूप निरूपण करते समय हमारे ध्यान में कोई व्यक्ति विशेष नहीं रहना चाहिए; अपितु जिनवाणी रहनी चाहिए, भगवान ऋषभदेव की मुनिदशा रहनी चाहिए। व्यक्तिविशेष की चर्चा होने पर वातावरण विक्षुब्ध हो जाता है और फिर मुनिधर्म का स्वरूप स्पष्ट करना भी संभव नहीं रहता है। अतः टीकाटिप्पणी और आलोचना-प्रत्यालोचना से पूरी तरह बचना चाहिए। किसी भी प्रकार के वाद-विवाद में नहीं उलझना ही आत्मार्थ है, आत्मार्थिता की सच्ची निशानी है।

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