Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 62
________________ 54 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव शिथिलाचार को भले ही न रोक पावें; पर हम स्वयं तो शिथिलाचारी न हो जावें, हमारे चित्त में तो शिथिलाचार और शिथिलाचारी प्रवेश न कर जावें। इतनी सावधानी तो हमें रखनी ही होगी। स्वयं ऋषभदेव ने इसकी चिन्ता कहाँ की थी? वे तो आत्मा में ही मग्न रहे, तब भी एक हजार वर्ष में केवलज्ञान प्राप्त कर सके। यदि हम इसप्रकार चाहे जहाँ उलझेंगे तो हमारा कोई ठिकाना ही न रहेगा और हम आत्महित से वंचित हो जायेंगे। ___ इस बात का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि कहीं दूसरों के सुधार के चक्कर में हम अपना अहित न कर बैठे। हमारी दशा भी उस चिड़िया के समान न हो जावे, जिसने बरसात में भीगते हुए बन्दर को यह सीख दी थी कि भाई तुम्हारे तो आदमी के समान हाथ-पैर हैं , तुम बरसात, धूप और सर्दी से बचने के लिए घर क्यों नहीं बनाते? देखों, हमारे तो हाथ भी नहीं है, फिर भी हम अपना एक घोंसला बनाती हैं और उसमें शान्ति से रहती हैं, गर्मी, सर्दी और बरसात से बच जाती हैं। भैया मेरी मानो तो तुम भी एक घर जरूर बना लो। उसका सत्य और सार्थक उपदेश भी चंचल प्रकृति बंदर को सुहा नहीं रहा था। अत: वह एकदम चिड़चिड़ा कर बोला - "तू चुप रहती है या फिर ......" बेचारी चिड़या सहम गई, पर साहस बटोर कर फिर बोली - "भैया, मैं तो तुम्हारी हित की बात कह रही थी। यदि तुम्हें बुरा लगता है तो कुछ नहीं कहूँगी। मुझे तो तुम पर दया आ रही थी। इसलिए इतना कह गई। बुरा क्यों मानते हो? जरा सोचो तो सही, इसमें क्या बुरी बात है? तुम सर्वप्रकार समर्थ हो, बना लो ना अपना घर ....।" चिड़िया अपनी बात पूरी ही न कर पाई थी कि बन्दर ने गुस्से में आकर उसका घोसला छिन्न-भिन्न कर दिया, तोड़ कर फेंक दिया और बोला -

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