Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 64
________________ 56 पंचकल्या. तिPARA शामिल किया जा सकता है? वैसे कल के पूरे दिन को केवल भयाणक के दिन के नाम से ही अभिहित करते हैं। कार्यक्रम में भी इस. छापा-~~..... जाता है। पर यह विभाजन स्थूल विभाजन है, सूक्ष्मता से विचार करें तो जबतक केवलज्ञान संबंधी कार्यक्रम आरंभ नहीं होता, तबतक दीक्षाकल्याणक का समय ही समझना चाहिए। मैं यह नहीं कहता कि आप पत्रिका में भी कल के आधे दिन को दीक्षाकल्याणक और आधे दिन को ज्ञानकल्याणक के रूप में छापें, वहाँ तो जैसा छपता है, वैसा ही छपने दें; पर अपने ज्ञान में तो यह निर्णय अवश्य कर लें कि जबतक आहार का प्रसंग चल रहा है, तबतक दीक्षाकल्याणक का ही समय जानना, अन्यथा केवलज्ञानी को कवलाहार का प्रसंग आयेगा, जो न तो संभव ही है और न युक्तिसंगत ही। छह माह के उपवास के उपरान्त जब मुनिराज ऋषभदेव आहार के लिए निकले तो उस समय किसी को भी मुनिराजों को आहार देने की विधि ही ज्ञात न थी। लोग भोले-भाले सरल हृदय थे। जब उन्होंने देखा कि हमारे महाराजाधिराज ऋषभदेव आज विपन्नावस्था में हैं, न तो उनके पास वस्त्र हैं, न कोई सवारी; उनके पैरों में जूते तक नहीं हैं। अत: कोई तो उन्हें वस्त्र देने की कोशिश करने लगा, कोई सवारी के लिए हाथी-घोड़े भेंट में देने लगा और कोई जूते-चप्पल भेंट करने लगा। बात तो यहाँ तक पहुँची कि कुछ लोग उन्हें कन्या प्रदान करने लगे, जिससे ऋषभदेव की उजड़ी गृहस्थी बस सके।आहार के बारे में या तो कोई सोचता ही नहीं था। यदि सोचता भी तो उन्हें आहारदान की विधि ज्ञात न होने से ऋषभदेव आहार लेते ही नहीं। ऋषभदेव लगभग प्रतिदिन आहार के लिए निकलते, पर ७ माह ९ दिन तक ऐसा ही चलता रहा। ६ माह का उपवास और ७ माह ९ दिन तक आहार का न मिलना इसप्रकार 1 वर्ष १ माह और ९ दिन तक ऋषभदेव निराहार ही रहे। देखो, विधि की विडम्बना, जो स्वयं तीर्थंकर हो, जिसके जन्मकल्याणक में इन्द्रों ने अतिशय सम्पन्न महोत्सव मनाया हो, जिसके गर्भ में आने के

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