Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ 12 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव रामलीला का प्रदर्शन भी तो नाटक के रूप में ही होता है। वैष्णव संस्कृति में रामलीला की महिमा भी कम नहीं है, जो उसका उदाहरण देने से हमारे पंचकल्याणक की महिमा घट जावेगी। ___ यहाँ एक प्रश्न यह भी उठाया जा सकता है कि आप बार-बार यह कह रहे हैं कि जब ऋषभदेव का असली पंचकल्याणक हुआ था, तब सौधर्मादि असली इन्द्रों ने ही आकर किया था, तो क्या हमारा यह पंचकल्याणक असली नहीं है, नकली है ? __कौन कहता है कि यह पंचकल्याणक नकली है ? यह असली भी नहीं है और नकली भी नहीं है। यदि यह असली है तो फिर चौथे काल में नाभिराय के घर अयोध्या में जो पंचकल्याणक सम्पन्न हुआ था, वह क्या था? असली पंचकल्याणक पंडालों में नहीं हुआ करते; पर यदि यह असली नहीं है तो नकली भी नहीं है, अपितु असली की असल-नकल है। नकली और नकल में बहुत बड़ा अन्तर होता है। ___ असल-नकल का अर्थ होता है सत्य प्रतिलिपि। सत्य प्रतिलिपि तो मूल के समान ही प्रामाणिक होती है, पर नकली का अर्थ तो एकदम गलत ही होता है। ___ जब कोई व्यक्ति नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र देता है और उसके साथ प्रमाण-पत्र की असल-नकल (सत्य प्रतिलिपि) भी लगाता है तो उसका काम हो जाता है, पर यदि नकली प्रमाण-पत्र लगावे तो जेल जाना होगा। यह पंचकल्याणक नकली नहीं है, असली पंचकल्याणक की असलनकल है, सत्य प्रतिलिपि है; अतः इसका फल भी असली के समान ही प्राप्त होता है। नाटक भी तो नायक का असली जीवन नहीं होता, नायक के जीवन की असल-नकल ही होता है; पर उसे असली के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता है। उसीप्रकार यह पंचकल्याणक भी तीर्थंकर ऋषभदेव के असली पंचकल्याणक की असल-नकल है, पर इसे असली के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता है।

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