Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 50
________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव इन्द्र-इन्द्राणियों, राजा-रानियों का एक साथ नाचना-गाना साधु-संतों को, ब्रह्मचारियों को कैसे सुहा सकता है ? क्योंकि वे तो इस राग-रंग की भूमिका को पार कर चुके होते हैं । 42 यह राग-रंग की बात आज तक ही है, कल से सब बंद | राजा ऋषभदेव की दो पत्नियाँ थीं नन्दा और सुनन्दा | नन्दा को यशस्वती भी कहते हैं । ये दोनों महाराजा कच्छ महाकच्छ की बहिनें थीं । महारानी नन्दा से भरतादि सौ पुत्र और ब्राह्मी नामक पुत्री और सुनन्दा से बाहुबली नामक पुत्र और सुन्दरी नामक पुत्री हुई थी । जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा, वे सम्राट भरत चक्रवर्ती राजा ऋषभदेव के ही प्रथम पुत्र थे । राजा ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को तो शस्त्रादि कठोर विद्याओं में निपुण बनाया; पर अक्षरविद्या और अंकविद्या ब्राह्मी और सुन्दरी को सिखाई। इससे एक बात तो अत्यन्त स्पष्ट है कि महिलाओं की शिक्षा के संदर्भ में राजा ऋषभदेव क्या सोचते थे ? आज जिसे हम शिक्षा कहते हैं, वह तो मूलतः तो महिलाओं की ही विद्या है; क्योंकि राजा ऋषभदेव ने ये विद्यायें अपनी पुत्रियों को ही सर्वप्रथम सिखाई थीं। हमारे दुर्भाग्य से बीच का कुछ समय ऐसा आया, जिसमें हमारी माँ - बहिनों को शिक्षा से वंचित रखा गया और कहा गया कि महिलाओं को पढ़ने-लिखने की क्या आवश्यकता है ? महिलाओं की शिक्षा का विरोध करने वालों को इस तथ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। हमारी लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि भी राजा ऋषभदेव की प्रथम पुत्री के नाम पर ही रखा गया था; क्योंकि इस अवसर्पिणी काल में कर्मभूमि के आरंभ में सर्वप्रथम लिपि का ज्ञान ऋषभदेव द्वारा ब्राह्मी को ही दिया गया था । अतः इस लिपि का नाम भी उन्हीं के नाम पर चल पड़ा।

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