Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ तीसरा दिन सरल करने ही होंगे, कोमल करने ही होंगे। इसके बिना तो हमारा यह पंचकल्याणक सत्य प्रतिलिपि भी साबित न होगा। ऐसी स्थिति में यथोचित लाभ भी कैसे प्राप्त होगा ? यह एक विचारणीय बात है । 19 यहाँ भी एक प्रश्न संभव है कि आप आठ दिन के लिए ही परिणामों के सुधारने की बात क्यों करते हैं, जीवन भर के लिए परिणाम सुधारने की बात क्यों नहीं करते ? अरे भाई, हम तो यही चाहते हैं कि हम सबके परिणाम जीवन भर के लिए ही सुधरें, पर हमारे चाहने से क्या होता है ? यदि प्रतिष्ठाचार्य जीवन भर के लिए प्रतिज्ञाएँ दिलाने लगे तो उन्हें न तो जाप में बैठने के लिए लोग मिलेंगे और न कोई इन्द्र या राजा ही बनेगा। अतः प्रतिज्ञा तो आठ दिन के लिए ही ठीक है। जब एक बार आठ दिन के लिए हमारा जीवन सदाचारमय हो जायगा; शुद्ध, सरल, सहज व सात्विक हो जायगा तो हम उसके लाभ से भी अच्छी तरह परिचित हो जावेंगे। अतः ऐसा भी हो सकता है कि फिर हम जीवन भर ही शुद्ध, सात्विक, सरल व सदाचारी बने रहें । यदि कोई व्यक्ति बीड़ी पीता है, तम्बाकू खाता है, चाय पीता है तो उसे ऐसा भ्रम हो जाता है कि मैं इनके बिना रह ही नहीं सकता, पर जब वह आठ दिन इनके बिना रहकर भी स्वस्थ रहता है तो उसमें आत्म-विश्वास जागृत हो जाता है और वह इन पदार्थों को जीवन भर के लिए भी छोड़ देता है । दिन में बार-बार खाने वाले यह समझते हैं कि एक बार खायेंगे तो कमजोरी आ जायेगी, पर जब आठ दिन तक एक बार ही खाते हैं और एकदम ठीक रहते हैं तो बार-बार खाने से विरक्त ही हो जाते हैं । एक व्यक्ति जब अपने परिवार में अकेला रह गया तो उसने काशी वास का विचार किया। उसने अपनी इकलौती विवाहित बेटी को पत्र लिखा कि अब जीवन भर काशीवास करना चाहता हूँ । किन्तु काशी जाने के पूर्व आठ

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