Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 33
________________ चौथा दिन 25 छुधा विस्मय आरत खेद' इत्यादि दोषों के नाम गिनाने वाले छन्द में जन्ममरण का नाम सबसे पहले आया है। जो दोषों में प्रधान हो, ऐसे जन्म को कल्याणस्वरूप कैसे कहा जा सकता है ? हम पूजन की ' ओं ह्री' में बोलते हैं कि 'जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा' । तात्पर्य यह है कि मैं जन्म, जरा और मृत्यु के विनाश के लिए जल चढ़ाता हूँ। जिनके नाश की भावना हम प्रतिदिन भाते हों, उन्हें कल्याणस्वरूप कैसे कहा जा सकता है ? सबसे बड़ी बात तो यह है कि गर्भ और जन्म का भी उत्सव मनाया जा सकता है तो फिर तीर्थंकरों का ही क्यों, हमारा - तुम्हारा क्यों नहीं ? क्योंकि गर्भ में तो हम भी आये थे, जन्म भी हमारा हुआ ही था । हमने दीक्षा नहीं ली, हमें केवलज्ञान भी नहीं हुआ, हमें मोक्ष की भी प्राप्ति नहीं हुई; अतः हमारे ये तीन कल्याणक तो मनाये नहीं जा सकते, पर गर्भ और जन्म तो हमारे भी हुए हैं; अतः गर्भ और जन्म के उत्सव तो हमारे भी मनाये ही जा सकते हैं। कुछ लोग इसप्रकार के उत्सव करते भी हैं । बर्थडे के नाम से इसप्रकार के उत्सव किये भी जाने लगे हैं। मनुष्य का जन्म लेना तो आज एक समस्या बनी हुई है, सरकार इस बात से परेशान है कि इतने लोग जन्म क्यों ले रहे हैं ? जन्मदर कम करने के लिए सरकार परिवार नियोजन के नाम से करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, 'हम दो और हमारे दो' का नारा दे रही है; फिर भी हम जन्म का उत्सव मनाये जा रहे हैं, उसे कल्याणस्वरूप कहे जा रहे हैं। ये हैं कुछ सवाल, जो आज के लोगों के हृदय में हिलोरे लेते हैं । इनके संदर्भ में भी विचार किया जाना चाहिए। अरे भाई, यह तो जन्म-मरण का नाश करने वाले का जन्मोत्सव है । वह जन्म तो कल्याणस्वरूप ही है, जिसमें जन्म-मरण के नाश करने का अपूर्व पुरुषार्थ किया जाता है । हमने भले ही अनन्त जन्म लिए हों, पर जन्म-मरण

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