Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 31
________________ 23 तीसरा दिन होंगे तो पत्थरों की वर्षा न होगी तो और क्या होगा? अतः हम सभी अपने परिणामों को सुधारें। धीरे-धीरे परिणामों को निर्मल करें, जिससे स्वयं का तो कल्याण होगा ही, यह महोत्सव भी सफल होगा, सार्थक होगा। रत्नों की वर्षा भी इन्द्रों ने ही की थी, देवों ने ही की थी, अयोध्यावासियों ने ही की थी। आप भी इन्द्र बन गए हैं न, कुबेर बन गए हैं न ? अयोध्यावासी हो गये न ? अब आपको ही तो करनी है रत्नों की वर्षा । आप न करेंगे तो कौन करेगा? आप रत्नों की वर्षा में वर्षे रत्नों को समेटने वाले बनने की न सोचें, रत्नों की वर्षा करने वाले बनें। ___ सब परिणामों का खेल है। यह पंचकल्याणक महोत्सव भी परिणाम सुधारने का सर्वोत्कृष्ट निमित्त है। आचार्य पूज्यपाद ने इन्हें सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा है। सम्यग्दर्शन भी तो आत्मा के आत्मसम्मुख निर्मल परिणामों का नाम है। परिणाम भी तो अपरिणामी भगवान आत्मा के आश्रय से सुधरते हैं। अतः अपने उपयोग को सम्पूर्ण जगत से हटाकर त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा पर केन्द्रित कीजिए, भगवान बनने का यही उपाय है। अब राजा-रानी और इन्द्र-इन्द्राणी बनने का विकल्प छोड़कर स्वयं भगवान बनने की भावना को जागृत कीजिए। इन्द्र-इन्द्राणी और राजा-रानी तो जिनको बनना था, बन गये, आप तो अयोध्यावासी ही बन जाइये और ऐसे सपने संजोइये कि आप भी भगवान बनने की प्रक्रिया को आरंभ कर सकें। __ अब कल से पंचकल्याणक के मूल दिन आरंभ होंगे। कल गर्भकल्याणक है। अब आप अपने मानस को ऐसा बनाने का प्रयत्न कीजिए कि ज्यों-ज्यों कार्यक्रम आगे बढ़े, त्यों-त्यों आपके परिणाम भी बढ़ते जायें। इस पंचकल्याणक का समापन निर्वाण के रूप में होगा। हमारे परिणाम भी उसी दिशा में बढ़ने चाहिए। तभी हमारा इस पंचकल्याणक में सम्मिलित होना सार्थक होगा, सफल होगा।

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