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पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव भी हमारा कर्तव्य तो यही है कि हम उन्हें शादी करने के लिए प्रेरित करें, उनके योग्य वधू की तलाश करें; फिर जो होना होगा, होगा तो वही। ___ महाराजा नाभिराय और महारानी मरुदेवी ने परस्पर विचार-विमर्श करके राजकुमार ऋषभदेव से शादी करने के सन्दर्भ में चर्चा करने का निश्चय किया।
नाभिराय बोले - "ऋषभ बहुत ही बुद्धिमान और विवेकी राजकुमार हैं। उनसे तर्क-वितर्क में जीतना तो आसान नहीं है, फिर भी हमें उन युक्तियों पर विचार कर लेना चाहिए, जिनके आधार पर उन्हें शादी के लिए राजी किया जा सके।" ___ महारानी मरुदेवी बोली - "तुम्हारे तर्क-वितर्क से कुछ भी होने वाला नहीं है, उनके हृदय को तो भावुकता से ही मोड़ा जा सकेगा। हजारों तर्कवितर्क जहाँ निष्फल हो जाते हैं, हृदय को पिघला देने वाली भावनाओं का उद्वेग वहाँ भी रास्ता निकाल लेता है। अतः मैं तो उसे भावना के वेग में ही बहाऊँगी। मुझे विश्वास है कि मेरी आन्तरिक भावना अवश्य सफल होगी। माँ की ममता को कौन ठुकरा सकता है ?" ___ "बात तो तुम ठीक ही कहती हो, क्योंकि नारियों की सबसे बड़ी शक्ति ही भावावेग है; पर तुम यह क्यों भूल जाती हो कि भावावेग का यह शस्त्र भी रागियों पर ही चलता है, वैरागियों पर नहीं। यदि वैरागी भी इससे परास्त होने लगते तो अब तक कोई दीक्षा ही न ले पाता; क्योंकि इस शस्त्र का प्रयोग तो प्रत्येक माँ करती है, पलियाँ भी करती हैं, पर असली वैरागी को तो आज तक न तो कोई माँ रोक सकी है और न कोई पत्नी। विवेकी वैरागियों पर न तर्क का वश चलता है और न वे भावनाओं के वेग में ही बहते हैं। अतः ऋषभ पर न तो तुम्हारी भावनाओं का असर होना है और न मेरे तर्कों का।"
"तुम तो हमेशा निराशा की ही बात करते हो। कुछ भी हो, हमें समझाना तो होगा ही, बात तो करनी ही होगी। हो सकता है, वह हमारी बात मान ही ले, हमारे दिल को न तोड़े।"