Book Title: Panchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ दूसरा दिन 11 नाटक शब्द का सही भाव न समझने के कारण ही उन्हें इसप्रकार का विकल्प आता है, पर नाटक शब्द स्वयं महान है। आचार्य अमृतचन्द्र ने तो ग्रन्थाधिराज समयसार को भी नाटक समयसार कहा है। क्या ये प्रतिष्ठापाठ समयसार से भी महान हैं ? नाटक समयसार अध्यात्म का सर्वोत्कृष्ट नाटक है और ये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव व्यवहार के सर्वोत्कृष्ट नाटक हैं, जो हमारे जीवन को परिमार्जित करते हैं । मूल पात्रों के जीवन को सीमित समय में चतुर निर्देशकों के निर्देशन में अभिनेताओं द्वारा अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना ही तो नाटक का वास्तविक स्वरूप है। इन पंचकल्याणकों का निर्देशक प्रतिष्ठाचार्य होता है। प्रतिष्ठाचार्य के निर्देशन में तीर्थंकरों के जीवन की कल्याणकारी घटनाओं को पात्रों द्वारा सीमित समय में पंचकल्याणकों के स्टेज पर प्रस्तुत किया जाना ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव है। इसमें नाटक के सभी तत्त्व विद्यमान हैं। अजैन जनता को पंचकल्याणक का स्वरूप समझाने की भावना से जब मैंने एक बार यह कहा कि यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एक प्रकार से जैनियों की रामलीला है तो कुछ लोग उद्वेलित हो गये और कहने लगे कि आप हमारे इस पंचकल्याणक को रामलीला कहते हो। ___ मैंने उन्हें समझाने का प्रयत्न किया कि भाईसाहब ये अजैन भाई रामलीला के उदाहरण से इसका स्वरूप जितनी अच्छी तरह समझ सकते हैं; उससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है। मैं रामलीला का उदाहरण देकर पंचकल्याणकों की प्रतिष्ठा घटाना नहीं चाहता, अपितु बढ़ाना चाहता हूँ। मैं पंचकल्याणकों का विरोधी नहीं हूँ। राम भी तो भगवान हैं, जैनियों के यहाँ भी वे तीर्थंकरों के समान वीतरागी सर्वज्ञ होकर मोक्ष गये हैं। रामलीला में उनके जीवन को प्रदर्शित कर जनता को सन्मार्ग पर लगाने का ही प्रयास किया जाता है और इन पंचकल्याणकों में यही होता है।

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