Book Title: Panch Pratikraman Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak MandalPage 11
________________ [ ५ ] अपने विघ्नों की राम-कहानी सुनाना, कागज़ और स्थाही को खराब करना तथा समय को बरबाद करना है । मुझे तो इसी में खुशी है कि चाहे देरी से या जल्दी से, पर अब, यह पुस्तक पाठकों के सामने उपस्थित की जाती है । उक्त बाबू साहब की इच्छा के अनुसार, जहाँ तक हो सका है, इस पुस्तक के बाझं आवरण अर्थात कागज, छपाई, स्याही, जिल्द आदि की चारुता के लिये प्रयत्न किया गया है । खर्च में भी किसी प्रकार की कोताही नहीं की गई है। यहा तक कि पहिले छपे हुए दो फर्म, कुछ कम पसन्द आने के कारण रद्द कर दिये गये । तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह पुस्तक सर्वाङ्ग पूर्ण तथा त्रुटियों से बिल्कुल मुक्त है। कहा इतना ही जा सकता है कि त्रुटियों को दूर करने की ओर यथासंभव ध्यान दिया गया है । प्रत्येक बात की पूर्णता क्रमशः होती है । इस लिये आशा है कि जो जो त्रुटियाँ रह गई होंगी, वे बहुधा अगले संस्करण में दूर हो जायेंगी। साहित्य-प्रकाशन का कार्य कठिन है। इस में विद्वान तथा श्रीमान्, सब की मदत चाहिए । यह 'मण्डल' पारमार्थिक संस्था है । इस लिये वह सभी धर्म-रुचि तथा साहित्य-प्रेमी विद्वानों व श्रीमानों से निवेदन करता है कि वे उस के साहित्य-प्रकाश में यथासमव सहयोग देते रहें। और धर्म के साथ-साथ अपने नाम को चिरस्थायी करें। मन्त्रीश्रीआत्मानन्द-जैन-पुस्तक-प्रचारक-मण्डल, रोशनमुहल्ला, आगरा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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