Book Title: Panch Pratikraman Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal View full book textPage 9
________________ [ ३ ] इस के सबूत में सेठ खेतसी खीसी जैसे प्रसिद्ध गृहस्थ का कथन जरा ध्यान खींचने वाला है। उन्हों ने कलकत्ते में आकर कान्फ्रेन्स के सभापति की हैसियत से अपने बडे २ प्रतिष्ठित साधर्मिक बन्धुओं की मुलाकात करते समय यह कहा था कि "मुझे अभी तक यह मालूम ही न था कि अपने जैन समाज में 'राजा' का खिताब धारण करने वाले भी लोग हैं ।" यह एक अज्ञान है । इस अज्ञान से अपने समाज के विषय में बहुत छोटो भावना रहती है । इस छोटी भावना से हरेक काम करने में आशा तथा उत्साह नहीं बढ़ते । यह अनुभव की बात है कि जब हम अपने समाज में अनेक विद्वान्, श्रीमान् तथा अधिकारी लोगों को देखते व सुनते हैं, तब हमारा हृदय उत्साहमय हो जाता है । इसी आशय से मेरा यह विचार रहता है कि कम से कम 'मण्डल' की ओर से प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में तो किसी-न-किसी योग्य मुनिराज, विद्वान् या श्रीमान् का फोटो दिया ही जाय और उन का संक्षिप्त परिचय भी । जिससे कि पुस्तक के प्रचार के साथ २ समाज को ऐसे योग्य व्यक्ति का परिचय भी हो जाय । तदनुसार मेरी दृष्टि उक्त बाबूजी की ओर गई । और मैं ने श्रीमान् बाहादुरसिंहजी से, जो कि उक्त बाबूजी के सुपुत्र हैं, इस बात के लिये प्रस्ताव किया । उन्हों ने मेरी बात मान कर अपने पिता का फोटो देना मंजूर किया । एतदर्थ में उनका कृतज्ञ हूँ । चाहे पुनरुक्ति हो, पर मैं उक्त बाबूजी की उदारता की सराहना किये बिना नहीं रह सकता । दूसरे श्रीमानों का भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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