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क्षमा-याचना
साहित्य समान का दर्पण होता है । प्रत्येक समाज का रूपचित्र तत्कालीन साहित्य में अंकित और मुखरित रहता है । महान् पुरुषो एवं समाज को बन्दनीय प्रतिभाओ के अनुपम आदर्श तथा गौरवपूर्ण क्रिया कलाप साहित्य कोश में ही सुरक्षित रहते हैं । आनेवाली पीढियें अतीत की अवस्था एव व्यवस्था को समझकर ही नव निर्माण की ओर अग्रसर होती है। अतः किसी भी समाज के लिए साहित्य-सृजन उपयोगी ही नही, अनिवार्य भी है ।
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विशाल जैन समाज का उज्ज्वल इतिहास सहस्त्रो वर्षों से अनेक शीर्षस्थ इतिहासकार तथा साहित्य मनीषी अवाध गति से लिखते आरहे हैं, किन्तु ऐसा लगता है मानो अभी इस महान् और वीर समाज के इतिहास की भूमिका का शीर्षक मात्र ही बंधा है। जैन समाज पर मूर्धन्य विद्वानो को लेखनी को भी . श्रादि-आदि शब्दो के साथ उपराम पाने वाध्य होना पड़ा है । मत. साधारण सी अबोध लेखनी उस दुरूह पथ पर चलने का साहस कैसे बटोर पाती। इस पूरे समाज में अनेक सिद्ध विभूतियें, महान् तपस्वी, परम त्यागी, उदारमना, सर्वस्वदानी और आदर्श समाज-साधको के प्रचुर मात्रा में दर्शन मिलते है । इन सभी पवित्र आत्माओ का अर्चन मेरी छोटी सी लेखनी को अल्प मसि से कैसे सम्भव था ?
श्री पद्मावती पुरवाल समाज विस्तृत जैन सागर की ही एक प्रमुख पावन धारा है । संख्या एवं साधनो की दृष्टि से अल्प तथा सीमित होते हुए भी इसका अतीत महान् और अपने आंचल में एक गौरव गाथा बाधे है । इस समाज के जन्म की कहानी ही स्वाभिमान की हुंकार से आरम्भ होती है और आज तक यह उसकी रक्षा तथा मान-मर्यादा के लिए हर सम्भव बलिदान देता हुआ —अपने अस्तित्व को बनाए है।
श्री पद्मावती पुरवाल समाज की जनसंख्या तथा अवस्था को जानने के लिए डायरेक्टरी के निर्माण का विचार मन में आया । इस सम्बन्ध में समाज के प्रमुख महानुभाओ से जब परामर्श किया, तो उनके सद्परामर्शो ने इस विचार की पुष्टि ही नही की वरन् इसकी आवश्यकता बताते हुए इसे शीघ्र हो सम्पूर्ण करने की प्रेरणा भी की । अतः डायरेक्टरी का कार्य आरम्भ किया गया । इसकी प्रारम्भिक रूप-रेखा तैयार ही की जा रही थी कि इस कार्य के सहयोगी तथा कलकत्ता के जानेमाने साहित्यकार की रघुनाथप्रसाद जी सिंहानिया का कैन्सर की बीमारी के कारण अचानक स्वर्गवास हो गया । श्री सिंहानिया जी के इस असामयिक वियोग से "पद्मावती पुरवाल" मासिक पत्रिका तथा श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी के सम्मुख एक कठिन समस्या उत्पन्न हो गयी । उनके साथ बनाया गया भ्रमण का विस्तृत कार्यक्रम तथा डायरेक्टरी का निश्चित स्वरूप, सभी धूमिल सा हो गया । किन्तु इस घटना को विधि का विधान मान येनकेन प्रकारण हम अपने प्रयत्न में जुटे रहे और डायरेक्टरी की समग्री का संग्रह यथावत् चलता रहा ।
किसी एक व्यक्ति या एक परिवार का वृतान्त संग्रह कर लेना अथवा लिख देना सरल होता है अपेक्षा कृत हजारों परिवारो के डायरेक्टरी के लिए सामग्री प्राप्त करने में हमने अपनी ओर से कोई कोर-कसर न उठा रखी । "पद्मावती पुरवाल" पत्रिका द्वारा बरावर प्रचार करते रहे। समाज के प्रमुख जनो के पास पर्याप्त संख्या में फार्म भेजे गए । कुछ व्यक्तियो को विशेषरूप से इस कार्य के लिए नियुक्त किया, जिन्होने यथा साध्य नगर-नगर और ग्राम-ग्राम घूम कर जनसंख्या का विवरण प्राप्त किया। जहाँ वह न पहुंच पाये वहां